अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदात्यष्टिः
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
अ॑होरा॒त्रैर्विमि॑तं त्रिं॒शद॑ङ्गं त्रयोद॒शं मासं॒ यो नि॒र्मिमी॑ते। तस्य॑ दे॒वस्य॑ क्रु॒द्धस्यै॒तदागो॒ य ए॒वं वि॒द्वांसं॑ ब्राह्म॒णं जि॒नाति॑। उद्वे॑पय रोहित॒ प्र क्षि॑णीहि ब्रह्म॒ज्यस्य॒ प्रति॑ मुञ्च॒ पाशा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हो॒रा॒त्रै: । विऽमि॑तम् । त्रिं॒शत्ऽअ॑ङ्गम् । त्र॒य॒:ऽद॒शम् । मास॑म् । य: । नि॒:ऽमिमी॑ते । तस्य॑ । दे॒वस्य॑ ॥ क्रु॒ध्दस्य॑ । ए॒तत् । आग॑: । य: । ए॒वम् । वि॒द्वांस॑म् । ब्रा॒ह्म॒णम् । जि॒नाति॑ । उत् । वे॒प॒य॒ । रो॒हि॒त॒ । प्र । क्षि॒णी॒हि॒ । ब्र॒ह्म॒ऽज्यस्य॑ । प्रति॑ । मु॒ञ्च॒ । पाशा॑न् ॥३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अहोरात्रैर्विमितं त्रिंशदङ्गं त्रयोदशं मासं यो निर्मिमीते। तस्य देवस्य क्रुद्धस्यैतदागो य एवं विद्वांसं ब्राह्मणं जिनाति। उद्वेपय रोहित प्र क्षिणीहि ब्रह्मज्यस्य प्रति मुञ्च पाशान् ॥
स्वर रहित पद पाठअहोरात्रै: । विऽमितम् । त्रिंशत्ऽअङ्गम् । त्रय:ऽदशम् । मासम् । य: । नि:ऽमिमीते । तस्य । देवस्य ॥ क्रुध्दस्य । एतत् । आग: । य: । एवम् । विद्वांसम् । ब्राह्मणम् । जिनाति । उत् । वेपय । रोहित । प्र । क्षिणीहि । ब्रह्मऽज्यस्य । प्रति । मुञ्च । पाशान् ॥३.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(अहोरात्रैः) दिनों और रात्रियों द्वारा (विमितम्) मापे हुए, (त्रिंशदङ्गम्) तीस अङ्गों वाले, (त्रयोदशं मासम्) १३ वे मास का (यः) जो परमेश्वर (निर्मिमीते) निर्माण करता है। (तस्य देवस्य-पाशान्) पूर्ववत् (मन्त्र १)।
टिप्पणी -
[सौरमास वेद में ३० दिनों का माना है, और वर्ष ३६० दिनों का। यथा "तस्मिन् साकं त्रिशता न शङ्कवोऽर्पिताः षष्टिर्न चला चलास:" (ऋ० १।१६४।४८), अर्थात् उस संवत्सर-चक्र में ३०० और ६० शङ्कु हैं। तथा "षष्टिर्ह वै त्रोणि च शतानि संवत्सरस्याहोरात्राः" (शत० ब्राह्मण ९।१।१।४३), अर्थात् ६० और ३०० दिन-रात्र, संवत्सर के हैं। राशिचक्र ३६०° अंशों में बांटा जाता है। सम्भवतः इन अंशों की दृष्टि से संवत्सर के ३६० सौर दिन माने हों। चान्द्रवर्ष ३५४ दिनों का होता है। Lunar year= a Period of twelve lunar months or 354 days (Chamber's Dictionary)। इस प्रकार वैदिक सौरवर्ष और चान्द्रवर्ष में ३६०-३५४=६ दिनों का अन्तर प्रतिवर्ष हो जाता है। ३० दिनों के मल मास या अधिमास के लिये ५ वर्ष अपेक्षित हैं, ६×५= ३० दिन। इन ५ वर्षों का वर्णन यजुर्वेद में हुआ है। यथा "संवत्सराय, परिवत्सराय, इदावत्सराय, इद्वत्सराय, वत्सराय"१ (३०।१५)। कहीं "इद्वत्सराय" के स्थान में "अनुवत्सर" नाम भी आया है, (अथर्व पैप्पलाद शाखा १७।६।१५)। इस प्रकार वैदिक ३६० दिनों के सौरवर्ष और ३५४ दिनों के चान्द्र वर्ष की दृष्टि से, प्रत्येक ५ वर्षो के पश्चात्, ३० दिनों का १ मलमास या अधिमास अथवा त्रयोदश मास पड़ता है। वैदिक ३६० दिनों के सौरवर्ष और वर्तमान कैलेण्डर के ३६६ दिनों के सौर वर्षों में भी लगभग ६ दिनों का अन्तर प्रति कैलेण्डर सौरवर्ष के हिसाब से पड़ता है। प्रति ५ वर्षों के पश्चात् ३० दिनों का एक मास इस हिसाब में भी पूर्ववत है। कैलेण्डर सौर वर्ष के दिन= ३६५ दिन, ५ घण्टे ४८ मिनिट, ४९.७ सेकण्ड, अर्थात् लगभग ३६६ दिन।] [१. पारस्कर गृह्यसूत्र ३।२।२ में इसी क्रम से ५ नाम पठित हैं (अथर्ववेद, विलियम डि्वट ह्विटनी, ६।५५।३)।]