अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 10
सूक्त - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
पुन॒र्वै दे॒वा अ॑ददुः॒ पुन॑र्मनु॒ष्या॑ अददुः। राजा॑नः स॒त्यं गृ॑ह्णा॒ना ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॑र्ददुः ॥
स्वर सहित पद पाठपुन॑: । वै । दे॒वा: । अ॒द॒दु॒: । पुन॑: । म॒नु॒ष्या᳡: । अ॒द॒दु॒: । राजा॑न: । स॒त्यम् । गृ॒ह्णा॒ना: । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम् । पुन॑: । द॒दु॒: ॥१७.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनर्वै देवा अददुः पुनर्मनुष्या अददुः। राजानः सत्यं गृह्णाना ब्रह्मजायां पुनर्ददुः ॥
स्वर रहित पद पाठपुन: । वै । देवा: । अददु: । पुन: । मनुष्या: । अददु: । राजान: । सत्यम् । गृह्णाना: । ब्रह्मऽजायाम् । पुन: । ददु: ॥१७.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(देवाः) दिव्यगुणी विद्वानों ने (ब्रह्मजायाम्) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञजाया को (वै) निश्चय से (पुनः) फिर (अददुः) वापस दे दिया, कर दिया, (मनुष्याः) सर्वसाधारण मनुष्यों ने (पुनः) फिर (अददुः) वापस दे दिया, कर दिया। (सत्यं गृह्णानाः) सत्यग्राही (राजानः) राजाओं ने ( पुनः) फिर (ददुः) वापस दे दिया, कर दिया।
टिप्पणी -
[मन्त्र-भावना विचार की अपेक्षा करती है। मन्त्र ९ में जब यह निर्णय दे दिया कि ब्रह्मजाया का पति ब्राह्मण ही है, न राजा, न वैश्य तब तद्भिन्न व्यक्ति ब्रह्मजाया के पति मन्त्र १० में सम्भावित ही नहीं, जिसे कि देव आदि ने फिर वापस दे दिया, कर दिया तथा मन्त्र १० में देवा:, मनुष्याः, राजानः पद बहुवचनान्त हैं। क्या इससे यह समझना चाहिए कि ब्रह्मजाया का विवाह नाना देवों, नाना मनुष्यों, नाना राजाओं के साथ हुआ और उन्होंने विचार करके ब्रह्मजाया को पुनः-पुनः वापस कर दिया, अतः प्रतीत यह होता है कि गुणकर्म से योग्य पति न मिलने के कारण बार-बार विवाह सम्बन्धी प्रस्ताव हुए, परन्तु देव आदि ने अपने-आपको, ब्रह्म-जाया के गुणकर्मों से रहित जानकर, विवाह-प्रस्ताव वापस कर दिये। मन्त्र ८ में प्रस्तावित पति ब्रह्मजाया को अनभिमत हुए और मन्त्र १० में प्रस्तावित ब्रह्मजाया सम्बन्धी विवाह देव आदि को अनभिमत हुए। मन्त्रों में वर्णन कथानक रूप में हैं, वास्तविक नहीं।]