अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
सूक्त - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
ब्र॑ह्मचा॒री च॑रति॒ वेवि॑ष॒द्विषः॒ स दे॒वानां॑ भव॒त्येक॒मङ्ग॑म्। तेन॑ जा॒यामन्व॑विन्द॒द्बृह॒स्पतिः॒ सोमे॑न नी॒तां जु॒ह्वं न दे॑वाः ॥
स्वर सहित पद पाठब्र॒ह्म॒ऽचा॒री । च॒र॒ति॒ । वेवि॑षत् । विष॑: । स: । दे॒वाना॑म् । भ॒व॒ति॒ । एक॑म् । अङ्ग॑म् । तेन॑ । जा॒याम् । अनु॑ । अ॒वि॒न्द॒त्। बृह॒स्पति॑: । सोमे॑न । नी॒ताम् । जु॒ह्व᳡म् । न । दे॒वा॒: ॥१७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मचारी चरति वेविषद्विषः स देवानां भवत्येकमङ्गम्। तेन जायामन्वविन्दद्बृहस्पतिः सोमेन नीतां जुह्वं न देवाः ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मऽचारी । चरति । वेविषत् । विष: । स: । देवानाम् । भवति । एकम् । अङ्गम् । तेन । जायाम् । अनु । अविन्दत्। बृहस्पति: । सोमेन । नीताम् । जुह्वम् । न । देवा: ॥१७.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(ब्रह्मचारी१) ब्रह्म और वेद में विचरनेवाला, (चरति) [ब्रह्मचर्या श्रम में ] विचरता है, (विष:) और विशेषेण प्रापणोय सद्गुणों को (वेविषद्) प्राप्त कर लेता है। (सः) वह तब (देवानाम् ) [ ब्रह्मचर्याश्रम के ] दिव्य आचार्यों का (एकम् अङ्गम्) एक अङ्ग (भवति) हो जाता है। (तेन) उस कारण (बृहस्पतिः) बृहती वेदवाणी का पति यह ब्रह्मचारी (अनु) वैदिक विधि के अनुसार (जायाम् ) जाया की ( अविन्दत् ) प्राप्त कर लेता है ( सोमेन नीताम् ) जिसे सोम ने प्राप्त किया था। ( न) जैसेकि (देवा:) दिव्यगुणी विद्वान् (जुह्वम्) यज्ञिय-जुहू को प्राप्त करते हैं।
टिप्पणी -
[ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्याश्रम को समाप्त कर, जब तक विवाहित नहीं होता, तब तक वह गुरुरूप होकर, गुरुओं का एक अंगरूप होकर, सहायक होकर, ब्रह्माचर्याश्रम में रहता है, और जाया प्राप्त कर लेने पर वह गृहस्थ में प्रवेश करता और गृह्य "पंचमहायज्ञकर्म" करता है, जैसे कि अन्य दिव्य विद्वान-गृहस्थी, यज्ञिय-चमसों द्वारा, यज्ञकर्म करते हैं, पत्नी की प्राप्ति मानो जुहू की प्राप्ति के सदृश है, जोकि “गृह्य पंचमहायज्ञों" के करने में साधन रूप हो जाती है। विष= विष्लृ व्याप्तौ (जुहोत्यादिः), व्याप्तिः= विशेषेण आप्तिः, प्राप्तिः, सद्गुणों की।] [१. ब्राह्मण और ब्रह्मजाया के विवाह के प्रकरण में ब्रह्मचारी और जाया के वर्णन के दो अभिप्राय सम्भव हैं-(१) "ब्राह्मण और ब्रह्मजाया तथा "ब्रह्मचारी और जाया" समानार्थक हैं। (२) "ब्राह्मण-और-ब्रह्मजाया के विवाह में "ब्रह्मचारी और जाया" का विवाह आदर्शरूप में उपस्थित किया है।]