अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 18
सूक्त - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
नास्य॑ धे॒नुः क॑ल्या॒णी नान॒ड्वान्त्स॑हते॒ धुर॑म्। विजा॑नि॒र्यत्र॑ ब्राह्म॒णो रात्रिं॒ वस॑ति पा॒पया॑ ॥
स्वर सहित पद पाठन । अ॒स्य॒। धे॒नु: । क॒ल्या॒णी । न । अ॒न॒ड्वान् । स॒ह॒ते॒ । धुर॑म् । विऽजा॑नि: । यत्र॑ । ब्रा॒ह्म॒ण: । रात्रि॑म् । वस॑ति ।पा॒पया॑ ॥१७.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
नास्य धेनुः कल्याणी नानड्वान्त्सहते धुरम्। विजानिर्यत्र ब्राह्मणो रात्रिं वसति पापया ॥
स्वर रहित पद पाठन । अस्य। धेनु: । कल्याणी । न । अनड्वान् । सहते । धुरम् । विऽजानि: । यत्र । ब्राह्मण: । रात्रिम् । वसति ।पापया ॥१७.१८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 18
भाषार्थ -
(अस्य) इस राजा की (कल्याणी) कल्याणकारिणी (धेनु:) दुधार गौ (न) दूध नहीं देती, (न) और न (अनड्वान् ) शकट का वहन करनेवाला बैल (धुरम्) शकट की धुरी को (सहते) सहता है, (यत्र) जिस राष्ट्र में (ब्राह्मणः) ब्राह्मण, (विजानिः) विवाहित जाया से रहित हुआ (पापया) पापिन के साथ (रात्रि वसति) रात्रिवास करता है।
टिप्पणी -
[जिस राष्ट्र में ब्रह्म और वेद का प्रचार रोक दिया जाता है, उस राष्ट्र में अधिक दुर्व्यवस्था हो जाने से, पशुओं को घास-चारा नहीं मिलता, अतः दूध देनेवाली गौएँ भी दूध नहीं देती और न शकट वहन करनेवाले बैल, कमजोरी के कारण, शकट के वहन के भार को सहन कर सकते हैं तथा विवाह-व्यवस्था के भी बिगड़ जाने से ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ व्यक्ति भी दुराचारी हो जाते हैं।]