अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
सूक्त - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - उपरिष्टान्निचृद्बृहती
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
वैया॑घ्रो म॒णिर्वी॒रुधां॒ त्राय॑माणोऽभिशस्ति॒पाः। अमी॑वाः॒ सर्वा॒ रक्षां॒स्यप॑ ह॒न्त्वधि॑ दू॒रम॒स्मत् ॥
स्वर सहित पद पाठवैया॑घ्र: । म॒णि: । वी॒रुधा॑म् । त्राय॑माण: । अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपा: । अमी॑वा: । सर्वा॑ । रक्षां॑सि । अ॑प । ह॒न्तु॒ । अधि॑ । दू॒रम् । अ॒स्मत् ॥७.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
वैयाघ्रो मणिर्वीरुधां त्रायमाणोऽभिशस्तिपाः। अमीवाः सर्वा रक्षांस्यप हन्त्वधि दूरमस्मत् ॥
स्वर रहित पद पाठवैयाघ्र: । मणि: । वीरुधाम् । त्रायमाण: । अभिशस्तिऽपा: । अमीवा: । सर्वा । रक्षांसि । अप । हन्तु । अधि । दूरम् । अस्मत् ॥७.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 14
भाषार्थ -
(वीरुधाम्) विरोहण स्वभाववाली लता आदि में, (वैयाघ्रः) वैयाघ्र वीरुध् (मणिः) सर्वश्रेष्ठ रत्न है, (त्रायमाणः) यह मणि पालन करता, (अभिशस्तिपाः) तथा रोगजन्य हिंसा से रक्षा करता है। (अमीवाः) रोगों या रोग कीटाणुओं, तथा (सर्वा रक्षांसि) सब राक्षसी कर्मों का (अप हन्तु) यह हनन करे, और उन्हें (अस्मत् अधि) हम से (दूरम्) दूर करे। अमीवाः = अम रोगे (चुरादिः)।
टिप्पणी -
[वैयाघ्रः; व्याघ्र का अभिप्राय है "कास्टर-आयल का पौधा"। यथा “व्याघ्रः” The red variety of the castor-oil " (आप्टे)। व्याघ्र एव वैयाघ्रः (स्वार्थ अण्)। व्याघ्र ओषधि को मणि कहा है, यह वीरुधों में श्रेष्ठ है। यथा "जातौ जातौ युदुत्कृष्टं तद्रत्नमभिधीयते" (मल्लिनाथ)। तथा मणिः="Any thing best of its kind" (आप्टे)। कास्टर आयल पौधे को मणि इस लिये कहा है कि बद्धकोष्ठता [कब्ज] के लिये यह सर्वोत्तम तैल है। रोगों का कारण बद्धकोष्ठता [कब्ज] है। कोष्ठ के ठीक रहने पर रोग प्रायः नहीं होते। व्याघ्रपदघटित अन्य ओषधियां भी हैं, यथा व्याघ्रपुच्छ, व्याघ्रपात् (वनौषधि चन्द्रोदय, चन्द्रराजभण्डारी, विशारद)। अथवा "व्याघ्र इव वैयाघ्रः" व्याघ्रवत् रोगों पर आक्रमणकारी]|