अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - पञ्चपदा परानुष्टुबतिजगती
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
प्र॑स्तृण॒ती स्त॒म्बिनी॒रेक॑शुङ्गाः प्रतन्व॒तीरोष॑धी॒रा व॑दामि। अं॑शु॒मतीः॑ का॒ण्डिनी॒र्या विशा॑खा॒ ह्वया॑मि ते वी॒रुधो॑ वैश्वदे॒वीरु॒ग्राः पु॑रुष॒जीव॑नीः ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ऽस्तृ॒ण॒ती: । स्त॒म्बिनी॑: । एक॑ऽशुङ्गा: । प्र॒ऽत॒न्व॒ती: । ओष॑धी: । आ । व॒दा॒मि॒ । अं॒शु॒ऽमती॑: । का॒ण्डिनी॑: । या: । विऽशा॑खा: । ह्वया॑मि । ते॒ । वी॒रुध॑: । वै॒श्व॒ऽदे॒वी: । उ॒ग्रा: । पु॒रु॒ष॒ऽजीव॑नी: ॥७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रस्तृणती स्तम्बिनीरेकशुङ्गाः प्रतन्वतीरोषधीरा वदामि। अंशुमतीः काण्डिनीर्या विशाखा ह्वयामि ते वीरुधो वैश्वदेवीरुग्राः पुरुषजीवनीः ॥
स्वर रहित पद पाठप्रऽस्तृणती: । स्तम्बिनी: । एकऽशुङ्गा: । प्रऽतन्वती: । ओषधी: । आ । वदामि । अंशुऽमती: । काण्डिनी: । या: । विऽशाखा: । ह्वयामि । ते । वीरुध: । वैश्वऽदेवी: । उग्रा: । पुरुषऽजीवनी: ॥७.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(प्रस्तृणतीः) छत्त्राकार, (स्तम्बिनीः) झाड़ीरूप (एकशुङ्गाः) एक उपादान कारण वाली, (प्रतन्वतीः) तान-प्रतानों अर्थात् शाखा-प्रशाखाओं वाली, (अंशुमतीः) छोटी-छोटी शाखाओं वाली, (काण्डिनीः) अनेक गांठों या बड़े तनों वाली (याः विशाखाः) और जो शाखा विरहित, (वैश्वदेवीः) सूर्य, भूमि, जल आदि सब देवों के सम्बन्ध बाली, उन से उत्पन्न (पुरुष जीवनीः) पुरुष को जीवन देने वाली (उग्राः) बलशाली (वीरुधः) विरोहण करने वाली (ओषधीः) ओषधियां हैं, उन्हें (ते आवदामि) मैं तेरे लिये कहता हूं, उनका कथन करता हूं, इसलिये (ह्वयामि) तुझे अपने समीप बुलाता हूं।
टिप्पणी -
[ओषधियां गुणों और आकृतियों में नानाविध हैं, और इन के उत्पादक तत्त्व भी नानाविध है, परन्तु उपादान कारण की दृष्टि से वे एकविध हैं, एकरूप। इन का उपादान कारण एक है, प्रकृति; और उत्पादक एक है, परमेश्वर। “शुद्ध" का अभिप्राय है उपादान कारण या मूल कारण (छान्दोग्य० उप० अध्याय ६। खण्ड ८। सन्दर्भ ३-६)]।