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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 27
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    पुष्प॑वतीः प्र॒सूम॑तीः फ॒लिनी॑रफ॒ला उ॒त। सं॑मा॒तर॑ इव दुह्राम॒स्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुष्प॑ऽवती: । प्र॒सूऽम॑ती: । फ॒लिनी॑: । अ॒फ॒ला । उ॒त । सं॒मा॒तर॑:ऽइव । दु॒ह्रा॒म् । अ॒स्मै । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥७.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुष्पवतीः प्रसूमतीः फलिनीरफला उत। संमातर इव दुह्रामस्मा अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुष्पऽवती: । प्रसूऽमती: । फलिनी: । अफला । उत । संमातर:ऽइव । दुह्राम् । अस्मै । अरिष्टऽतातये ॥७.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 27

    भाषार्थ -
    (पुष्पवतीः) फूलों वाली, (प्रसूमतीः) नवीन कोपलों वाली, (फलिनी) फलों वाली, (उत) तथा (अफलाः) फलों से रहित [ओषधियां], (संमातरः) मिल कर, माताओं के (इव) सदृश, (अस्मै) इस के लिये (अरिष्टतातये) अहिंसा अर्थात् स्वास्थ्य के विस्तार के निमित्त (दुह्राम्) दुग्ध के सदृश रसों का दोहन करें, प्रदान करें।

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