अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 23
सूक्त - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
व॑रा॒हो वे॑द वी॒रुधं॑ नकु॒लो वे॑द भेष॒जीम्। स॒र्पा ग॑न्ध॒र्वा या वि॒दुस्ता अ॒स्मा अव॑से हुवे ॥
स्वर सहित पद पाठव॒रा॒ह: । वे॒द॒ । वी॒रुध॑म्। न॒कु॒ल: । वे॒द॒ । भे॒ष॒जीम् । स॒र्पा: । ग॒न्ध॒र्वा: । या: । वि॒दु: । ता: । अ॒स्मै । अव॑से । हु॒वे॒ ॥७.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
वराहो वेद वीरुधं नकुलो वेद भेषजीम्। सर्पा गन्धर्वा या विदुस्ता अस्मा अवसे हुवे ॥
स्वर रहित पद पाठवराह: । वेद । वीरुधम्। नकुल: । वेद । भेषजीम् । सर्पा: । गन्धर्वा: । या: । विदु: । ता: । अस्मै । अवसे । हुवे ॥७.२३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 23
भाषार्थ -
(वराहः) सूअर (वीरुधम्) ओषधि को (वेद) जानता है, (नकुलः) नेवला (भेषजीम्) चिकित्सा योग्य ओषधि को (वेद) जानता है। (सर्पा) सर्प (गन्धर्वाः) जो कि गन्ध द्वारा हिंसा कर देते हैं (याः) जिन औषधियों को (विदुः) जानते हैं, (ताः) उन्हें (अस्मा अवसे) इस के लिए रक्षार्थ (हुवे) मैं पुकारता हूं।
टिप्पणी -
[गन्धर्वाः = उग्रविष वाले “सर्प" जो कि सूंघने मात्र से व्यक्ति की हिंसा कर देते हैं; गन्ध + अर्वाः (अर्व हिंसायाम्; भ्वादि)। वराह आदि प्राणी निज रोग की ओषधि स्वयं जानते हैं। ये जिन ओषधियों को जानते हैं, उन्हें जान कर चिकित्सक रोगी के रोगानुसार उन का संग्रह करे। "हुवे" द्वारा संग्रह का निर्देश किया है। नेवला और सर्प परस्पर विद्वेषी हैं, ये विषैली ओषधियों को जानते हैं। विषप्रयोग द्वारा भी नानाविध रोगों का उपचार होता है]।