अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 21
सूक्त - अथर्वा
देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विराट् सूक्त
अ॒ष्ट जा॒ता भू॒ता प्र॑थम॒जर्तस्या॒ष्टेन्द्र॒र्त्विजो॒ दैव्या॒ ये। अ॒ष्टयो॑नि॒रदि॑तिर॒ष्टपु॑त्राष्ट॒मीं रात्रि॑म॒भि ह॒व्यमे॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ष्ट । जा॒ता । भू॒ता । प्र॒थ॒म॒ऽजा । ऋ॒तस्य॑ । अ॒ष्ट । इ॒न्द्र॒ । ऋ॒त्विज॑: । दैव्या॑: । ये । अ॒ष्टऽयो॑नि: । अदि॑ति: । अ॒ष्टऽपु॑त्रा: । अ॒ष्ट॒मीम् । रात्रि॑म् । अ॒भि । ह॒व्यम् । ए॒ति॒ ॥९.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
अष्ट जाता भूता प्रथमजर्तस्याष्टेन्द्रर्त्विजो दैव्या ये। अष्टयोनिरदितिरष्टपुत्राष्टमीं रात्रिमभि हव्यमेति ॥
स्वर रहित पद पाठअष्ट । जाता । भूता । प्रथमऽजा । ऋतस्य । अष्ट । इन्द्र । ऋत्विज: । दैव्या: । ये । अष्टऽयोनि: । अदिति: । अष्टऽपुत्रा: । अष्टमीम् । रात्रिम् । अभि । हव्यम् । एति ॥९.२१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 21
भाषार्थ -
(ऋतस्य) सत्यस्वरूप परमेश्वर सम्बन्धी (प्रथमजा) प्रथम पैदा होने वाले (भूता) सत्पदार्थ (अष्टजाता) आठ पैदा हुए थे। (इन्द्र) हे इन्द्र ! (अष्ट ऋत्विजः) ये आठ ऋत्विक् हैं (ये) जो (दैव्याः) देव सम्बन्धी हैं। (अष्टयोनिः) आठ योनियों वाली (अदितिः) प्रकृति (अष्टपुत्रा) आठपुत्रों वाली है, जो कि (अष्टमीम्, रात्रिम् अभि) आठवीं रात्रि को लक्ष्य करके (हव्यम्) हवि को (एति) प्राप्त होती है।
टिप्पणी -
[अदितिः = प्रकृति, जो कभी क्षीण नहीं होती [अ + दीङ्क्षये]। इस के आठपुत्र पैदा हुए। यथा - अष्टौ पुत्रासो अदितेर्ये जातास्तन्व१स्परि। देवाँ उप प्रैत्सप्तभिः परा मार्ताण्डमास्यत् ॥ (ऋ० १०।७२।८)। सप्तभिः पुत्रैरदितिरुप प्रैत्पूर्व्यं युगम्। प्रजायै मृत्यवे त्वत्पुनर्मार्ताण्डमाभरत् ॥ (ऋ० १०।७२।९)। अदिति के शरीर से जो आठ पुत्र पैदा हुए थे, उनमें से ७ पुत्रों द्वारा वह द्युलोकस्थ द्युति वाले तारागण आदि को प्राप्त हुई, और मार्तण्ड अर्थात् आदित्य को उसने परे फैंका (ऋक् १०।७२।८)। अभिप्राय यह कि अदिति के सात पुत्र हैं, सात ग्रह- बुध, शुक्र, पृथिवी, मंगल, गुरु [बृहस्पति], शनैश्चर। ये सातों या पृथिवी का उपग्रह चाँद तो रात्रि काल में द्युलोक में समय-समय पर यह दृष्टिगोचर होते रहते हैं, यह हैं अदिति का ७ पुत्रों सहित द्युलोक में जाना उपस्थित होना। परन्तु आठवां पुत्र मार्तण्ड [सूर्य] रात्रिकाल में दृष्टिगोचर नहीं होता, यह है उसका परे फैंकना (१०।७२।८)। तथा पूर्व युग में अदिति ७ पुत्रों समेत हुई, और प्रजा की उत्पत्ति तथा मृत्यु के लिये एक मार्तण्ड को अदिति ने पैदा किया। प्राणियों की उत्पत्ति और मृत्यु का विशेष सम्बन्ध मार्तण्ड के साथ है, अतः अदिति ने मार्तण्ड को भी पैदा किया। बुध आदि ७ पुत्र यद्यपि मार्तण्ड से ही पैदा हुए हैं, परन्तु रात्रिकाल में सात की दृष्टिगोचरता और दृष्टिगोचर न होने वाले सूर्य के इस भेद को दर्शाने के लिये इन में परस्पर पार्थक्य दर्शाया है (१०।७२।९)। इन्द्र द्वारा जीवात्मा का सम्बोधन किया है। अष्ट ऋत्विजः= ये ही ८, दैव्य ८ ऋत्विक हैं जो कि सौरमण्डलरूपी यज्ञ को रचा रहे हैं। अष्टयोनिः = आठ को पैदा करने वाली योनि से सम्बद्ध अदिति। अष्टमीम्, रात्रिम् – यह अष्टमी-रात्री कौन सो रात्री है, जिसे अभिलक्ष्य करके अदिति हव्य को प्राप्त होती है - यह अनुसंधेय है। सम्भवतः यह "एकाष्टका-रात्री" हो, जिस में कि हव्य प्रदान किया जाता है, हव्य की आहुतियां दी जाती हैं। इस एकाष्टका रात्री का वर्णन एकाष्टका-सूक्त में हुआ है (अथर्व० ३।१०।१-३)। परन्तु इस सूक्त में, अदिति का कथन नहीं हुआ। “भूतस्य पतये यजे" (९, १०) में भूतपति के लिये, तथा देवों के लिये (११) यज्ञ का विधान हुआ है। सूक्त ९।२१ में "दैव्याः" पद द्वारा देवों का निर्देश हुआ है। वे सम्भवतः एकाष्टका-सूक्त मन्त्र (११) में "देवान् ” पद द्वारा अभीष्ट हों परन्तु “भूतस्य पतिः" परमेश्वर ही प्रतीत होता है। अदिति परमेश्वर की जायारूप से अर्धाङ्गिनी है, अतः परमेश्वरार्पित हवि, अर्धाङ्गिनी रूप में अदिति को भी प्राप्त समझी जा सकती है। एकाष्टका-सूक्त, ९वें सूक्त की समाप्ति पर "परिशिष्ट" रूप में दे दिया है]।]