अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
सूक्त - अथर्वा
देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विराट् सूक्त
बृ॑ह॒ती परि॒ मात्रा॑या मा॒तुर्मात्राधि॒ निर्मि॑ता। मा॒या ह॑ जज्ञे मा॒याया॑ मा॒याया॒ मात॑ली॒ परि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृ॒ह॒ती । परि॑ । मात्रा॑या: । मा॒तु: । मात्रा॑ । अधि॑ । नि:ऽमि॑ता । मा॒या । ह॒ । ज॒ज्ञे॒ । मा॒याया॑: । मा॒याया॑: । मात॑ली । परि॑ ॥९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहती परि मात्राया मातुर्मात्राधि निर्मिता। माया ह जज्ञे मायाया मायाया मातली परि ॥
स्वर रहित पद पाठबृहती । परि । मात्राया: । मातु: । मात्रा । अधि । नि:ऽमिता । माया । ह । जज्ञे । मायाया: । मायाया: । मातली । परि ॥९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(बृहती) बृहती छन्द (मात्रायाः परि) मात्रा से; (मात्रा) और मात्रा (मातुः अधि) निज परिमाण से (निर्मिता) निर्मित हुई है। (माया) प्रज्ञा (ह) निश्चय से (मायायाः) प्रज्ञा से (जजे) पैदा हुई है, और (मायायाः परि) प्रज्ञा से (मातली) निर्माण की प्रतिष्ठा अर्थात् नींव प्रकट हुई है।
टिप्पणी -
[बृहती छन्द, "अक्षरों" की मापसंख्या से निर्मित होता है। परन्तु बृहती छन्द मात्राओं की मापसंख्या से भी निर्मित होता है - यह मन्त्र द्वारा सूचित होता है। दो प्रकार से छन्दों का निर्माण होता है, अक्षर संख्या द्वारा तथा मात्रासंख्या द्वारा। मात्रासंख्या द्वारा निर्मित छन्द को मात्रिक छन्द कहते हैं। मात्रा का निर्माण भी निज परिमाण द्वारा निश्चित होता है। ह्रस्व स्वर एक मात्रा का होता है, और दीर्घ स्वर दो मात्राओं का माया =प्रज्ञा। "माया प्रज्ञानाम" (निघं० ३।९)। वेदों में प्रतिपादित प्रज्ञा [ज्ञान] पारमेश्वरी प्रज्ञा से पैदा हुई है। इस वैदिक प्रज्ञा से अस्मदादि की प्रज्ञा [ज्ञान] पैदा हुई है। और हमारी प्रज्ञा द्वारा जगत्-और वैदिक छन्दों का निर्माण करने वाली "मातली" प्रकट होती है। मातली= मा (निर्माण) की प्रतिष्ठा अर्थात् आधारभूता पारमेश्वरी माता। मा+तल प्रतिष्ठायाम् (चुरादिः)]।