अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विराट् सूक्त
कुत॒स्तौ जा॒तौ क॑त॒मः सो अर्धः॒ कस्मा॑ल्लो॒कात्क॑त॒मस्याः॑ पृथि॒व्याः। व॒त्सौ वि॒राजः॑ सलि॒लादुदै॑तां॒ तौ त्वा॑ पृच्छामि कत॒रेण॑ दु॒ग्धा ॥
स्वर सहित पद पाठकुत॑: । तौ । जा॒तौ । क॒त॒म: । स: । अर्ध॑: । कस्मा॑त् । लो॒कात् । क॒त॒मस्या॑: । पृ॒थि॒व्या: । व॒त्सौ । वि॒ऽराज॑: । स॒लि॒लात् । उत् । ऐ॒ता॒म् । तौ । त्वा॒ । पृ॒च्छा॒मि॒ । क॒त॒रेण॑ । दु॒ग्धा ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
कुतस्तौ जातौ कतमः सो अर्धः कस्माल्लोकात्कतमस्याः पृथिव्याः। वत्सौ विराजः सलिलादुदैतां तौ त्वा पृच्छामि कतरेण दुग्धा ॥
स्वर रहित पद पाठकुत: । तौ । जातौ । कतम: । स: । अर्ध: । कस्मात् । लोकात् । कतमस्या: । पृथिव्या: । वत्सौ । विऽराज: । सलिलात् । उत् । ऐताम् । तौ । त्वा । पृच्छामि । कतरेण । दुग्धा ॥९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(कुतः) किस उपादान कारण से (तौ) वे दो (जातौ) पैदा हुए, (कतमः) कौन सा (सः) वह (अर्धः) समृद्ध१ भाग था, (कस्मात् लोकात्) किस लोक से, तथा (कतमस्याः२ पृथिव्याः) किस पृथिवी से। (विराजः) विराट् के (वत्सौ) दो वत्स (सलिलात्) सलिल से (उदेताम्) उदित हुए, (तौ) उन दो के सम्बन्ध में (त्वा पृच्छामि) तुझे मैं पूछता हूं कि (कतरेण) दो में से किस ने (दुग्धा) विराट् दोही थी।
टिप्पणी -
["तौ" द्वारा सूर्य और चन्द्रमा का निर्देश हुआ है, और "कुतः" द्वारा उपादान कारण का। सूर्य और चन्द्रमा प्रकृति रूपी उपादान कारण से उत्पन्न हुए। “कतमः" प्रकृति का पूर्व-दिशा का भाग था, जोकि “अर्धः" अर्थात् समृद्ध हुआ था, घना हुआ था, जहाँ से कि सूर्य और चन्द्रमा पैदा हुए। इस दिशा को "पूर्वे अर्धे" कहा है, अथर्व ० (४।२।६)। प्रकृति के भिन्न-भिन्न भागों से भिन्न-भिन्न नक्षत्र तथा तारा पैदा हुए,– यह दर्शाने के लिये “कतमः” में “तमप्" प्रत्यय हुआ है। "तमप्" प्रत्यय कम से कम तीन का सूचक है, जोकि प्रकृति के भिन्न-भिन्न भागों का निर्देशक है। "कस्मात् लोकात्" द्वारा प्रश्न किया है कि सूर्य किस लोक से पैदा हुआ। उत्तर से स्पष्ट है कि द्युलोक से। सूर्य का स्थान द्युलोक ही है। चन्द्रमा के सम्बन्ध में पूछा है कि वह किस पृथिवी से पैदा हुआ। पृथिवी त्रिविधा है, जलभाग, स्थलभाग और पर्वतभाग इस दृष्टि से कहा है कि "चन्द्रमा" पृथिवी के किस भाग से उत्पन्न हुआ। चन्द्रमा पृथिवी की परिक्रमा करता है, अतः पृथिवी से पैदा हुआ कहा है, जैसे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते और सूर्य से पैदा हुए हैं। सम्भवतः जहां समुद्रजल है उस स्थल से चन्द्रमा पैदा हुआ हो। सूर्य और चन्द्रमा "विराट्" नाम वाली प्रकृति से पैदा हुए थे, इस लिये इन्हें "विराजः वत्सौ" कहा है। ये दोनों "सलिलात्" "सति लीनं सलिलम्" प्रलय काल में सत्परमेश्वर में लीन प्रकृति से "उदैताम्" उदित हुए थे। तथा परमेश्वर और जीव इन दो में से "कतरेण" अर्थात् परमेश्वर द्वारा प्रकृति दोही गई थी, जिस से कि सूर्य और चन्द्रमा पैदा हुए। जीवात्मा इस दोहन में निमित्त कारण थे, भोगापवर्गदृष्टि से]। [१. इसलिये ग्रह, सूर्य, नक्षत्र और तारागण, निज धुरी पर, पश्चिम से पूर्व की ओर घूमते हैं, Revolve कर रहे हैं। २. पैप्पलाद शाखा में "कतमस्याः" के स्थान में "कतरक्ष्याः" पाठ है। “तरप्" प्रत्यय द्वारा दो पृथिवियां सूचित की है, सम्भवतः पृथिवी और मंगल। मंगल को "भौम" कहते हैं, अर्थात् भूमि से उत्पन्न हुआ। सम्भवतः जैसे भूमि में मंगल की उत्पत्ति सूचित की है, इसी प्रकार पृथिवी से मूलतः चन्द्रमा भी उत्पन्न हुआ हो या मंगल फटकर चन्द्रमा पैदा हुआ है और पृथिवी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के अधिक होने से चन्द्रमा पृथिवी का उपग्रह हो गया हो। और पृथिवी के सामुद्रिक अवतान अर्थात् गढ़े से हिमालय पर्वत का उत्थान हुआ हो। अर्थात् इस गढ़े का लावा ही हिमालय के उत्थानरूप में प्रकट हुआ हो।]