यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 22
ऋषिः - मयोभूर्ऋषिः
देवता - द्रविणोदा देवता
छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
11
उद॑क्रमीद् द्रविणो॒दा वा॒ज्यर्वाकः॒ सुलो॒कꣳ सुकृ॑तं पृथि॒व्याम्। ततः॑ खनेम सु॒प्रती॑कम॒ग्निꣳ स्वो॒ रुहा॑णा॒ऽअधि॒ नाक॑मुत्त॒मम्॥२२॥
स्वर सहित पद पाठउत्। अ॒क्र॒मी॒त्। द्र॒वि॒णो॒दा इति॑ द्रविणः॒ऽदाः। वा॒जी। अर्वा॑। अक॒रित्यकः॑। सु। लो॒कम्। सुकृ॑त॒मिति॒ सुऽकृ॑तम्। पृ॒थि॒व्याम्। ततः॑। ख॒ने॒म॒। सु॒प्रती॑क॒मिति॑ सु॒ऽप्रती॑कम्। अ॒ग्निम्। स्व᳖ इति॑ स्वः᳖। रुहा॑णाः। अधि॑। नाक॑म्। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम् ॥२२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उदक्रमीद्द्रविणोदा वाज्यर्वाकः सु लोकँ सुकृतम्पृथिव्याम् ततः खनेम सुप्रतीकमग्निँ स्वो रुहाणाऽअधि नाकमुत्तमम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
उत्। अक्रमीत्। द्रविणोदा इति द्रविणःऽदाः। वाजी। अर्वा। अकरित्यकः। सु। लोकम्। सुकृतमिति सुऽकृतम्। पृथिव्याम्। ततः। खनेम। सुप्रतीकमिति सुऽप्रतीकम्। अग्निम्। स्व इति स्वः। रुहाणाः। अधि। नाकम्। उत्तममित्युत्ऽतमम्॥२२॥
विषय - मनुष्य इस संसार में किस के समान हो के किस को प्राप्त हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे भूगर्भ विद्या के जानने हारे विद्वन्! (द्रविणोदाः) धनदाता आप जैसे (वाजी) बल वाला (अर्वा) घोड़ा ऊपर को उछलता है, वैसे (पृथिव्याम्) पृथिवी के बीच (अधि) (उदक्रमीत्) सब से अधिक उन्नति को प्राप्त हूजिये (सुकृतम्) धर्माचरण से प्राप्त होने योग्य (सुलोकम्) अच्छा देखने योग्य (उत्तमम्) अति श्रेष्ठ (नाकम्) सब दुःखों से रहित सुख को (अकः) सिद्ध कीजिये (ततः) इसके पश्चात् (स्वः) सुखपूर्वक (रुहाणाः) प्रकट होते हुए हम लोग भी इस पृथिवी पर (सुप्रतीकम्) सुन्दर प्रतीति का विषय (अग्निम्) व्यापक बिजुली रूप अग्नि का (खनेम) खोज करें॥२२॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जैसे पृथिवी पर घोड़े अच्छी-अच्छी चाल चलते हैं, वैसे हम तुम सब मिल कर पुरुषार्थी हो पृथिवी आदि की पदार्थविद्या को प्राप्त हो और दुःखों को दूर करके सब से उत्तम सुख को प्राप्त हों॥२२॥
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