Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 62
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - मित्रो देवता छन्दः - निचृदगायत्री स्वरः - षड्जः
    7

    मि॒त्रस्य॑ चर्षणी॒धृतोऽवो॑ दे॒वस्य॑ सान॒सि। द्यु॒म्नं चि॒त्रश्र॑वस्तमम्॥६२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मि॒त्रस्य॑। च॒र्ष॒णी॒धृत॒ इति॑ चर्षणि॒ऽधृतः॑। अवः॑। दे॒वस्य॑। सा॒न॒सि। द्यु॒म्नम्। चि॒त्रश्र॑वस्तम॒मिति॑ चि॒त्रश्र॑वःऽतमम् ॥६२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मित्रस्य चर्षणीधृतो वो देवस्य सानसि । द्युम्नञ्चित्रश्रवस्तमम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मित्रस्य। चर्षणीधृत इति चर्षणिऽधृतः। अवः। देवस्य। सानसि। द्युम्नम्। चित्रश्रवस्तममिति चित्रश्रवःऽतमम्॥६२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 62
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे स्त्री! तू (चर्षणीधृतः) अच्छी शिक्षा से मनुष्यों का धारण करने हारे (मित्रस्य) मित्र (देवस्य) कमनीय अपने पति के (चित्रश्रवस्तमम्) आश्चर्य्यरूप अन्नादि पदार्थ जिससे हों, ऐसे (सानसि) सेवन योग्य प्राचीन (द्युम्नम्) धन की (अवः) रक्षा कर॥६२॥

    भावार्थ - घर के काम करने में कुशल स्त्री को चाहिये कि घर के भीतर के सब काम अपने आधीन रख के ठीक बढ़ाया करे॥६२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top