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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 39
    ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - विराट् स्वरः - धैवतः
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    सं ते॑ वा॒युर्मा॑त॒रिश्वा॑ दधातूत्ता॒नाया॒ हृद॑यं॒ यद्विक॑स्तम्। यो दे॒वानां॒ चर॑सि प्रा॒णथे॑न॒ कस्मै॑ देव॒ वष॑डस्तु॒ तुभ्य॑म्॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। ते॒। वा॒युः। मा॒त॒रिश्वा॑। द॒धा॒तु॒। उ॒त्ता॒नायाः॑। हृद॑यम्। यत्। विक॑स्त॒मिति॒ विऽक॑स्तम्। यः। दे॒वाना॑म्। चर॑सि। प्रा॒णथे॑न। कस्मै॑। दे॒व॒। वष॑ट्। अ॒स्तु॒। तुभ्य॑म् ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सन्ते वायुर्मातरिश्वा दधातूत्तानाया हृदयँयद्विकस्तम् । यो देवानाञ्चरसि प्राणथेन कस्मै देव वषडस्तु तुभ्यम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। ते। वायुः। मातरिश्वा। दधातु। उत्तानायाः। हृदयम्। यत्। विकस्तमिति विऽकस्तम्। यः। देवानाम्। चरसि। प्राणथेन। कस्मै। देव। वषट्। अस्तु। तुभ्यम्॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 39
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    पदार्थ -
    हे पत्नि राणी! (उत्तानायाः) बड़े शुभलक्षणों के विस्तार से युक्त (ते) आप का (यत्) जो (विकस्तम्) अनेक प्रकार से शिक्षा को प्राप्त हुआ (हृदयम्) अन्तःकरण हो उस को यज्ञ से शुद्ध हुआ (मातरिश्वा) आकाश में चलने वाला (वायुः) पवन (संदधातु) अच्छे प्रकार पुष्ट करे। हे (देव) अच्छे सुख देने हारे पति स्वामी! (यः) जो विद्वान् आप (प्राणथेन) सुख के हेतु प्राणवायु से (देवानाम्) धर्मात्मा विद्वानों का जिस अनेक प्रकार से शिक्षित हृदय को (चरसि) प्राप्त होते हो, उस (कस्मै) सुखस्वरूप (तुभ्यम्) आपके लिये मुझ से (वषट्) क्रिया की कुशलता (अस्तु) प्राप्त होवे॥३९॥

    भावार्थ - पूर्ण जवान पुरुष जिस ब्रह्मचारिणी कुमारी कन्या के साथ विवाह करे, उस के साथ विरुद्ध आचरण कभी न करे। जो कन्या पूर्ण युवती स्त्री जिस कुमार ब्रह्मचारी के साथ विवाह करे, उस का अनिष्ट कभी मन से भी न विचारे। इस प्रकार दोनों परस्पर प्रसन्न हुए प्रीति के साथ घर के कार्य्य संभालें॥३९॥

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