यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 10
ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः
देवता - सोमो देवता
छन्दः - आर्ष्युष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
10
या व्या॒घ्रं विषू॑चिक॒ोभौ वृकं॑ च॒ रक्ष॑ति। श्ये॒नं प॑त॒त्रिण॑ꣳ सि॒ꣳहꣳ सेमं पा॒त्वꣳह॑सः॥१०॥
स्वर सहित पद पाठया। व्या॒घ्रम्। विषू॑चिका। उ॒भौ। वृक॑म्। च॒। रक्ष॑ति। श्ये॒नम्। प॒त॒त्रिण॑म्। सि॒ꣳहम्। सा। इ॒मम्। पा॒तु॒। अꣳह॑सः ॥१० ॥
स्वर रहित मन्त्र
या व्याघ्रँविषूचिकोभौ वृकञ्च रक्षति । श्येनम्पतत्रिणँ सिँहँ सेमम्पात्वँहसः ॥
स्वर रहित पद पाठ
या। व्याघ्रम्। विषूचिका। उभौ। वृकम्। च। रक्षति। श्येनम्। पतत्रिणम्। सिꣳहम्। सा। इमम्। पातु। अꣳहसः॥१०॥
विषय - फिर स्त्री-पुरुष कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ -
(या) जो (विषूचिका) विविध अर्थों की सूचना करनेहारी राजा की राणी (व्याघ्रम्) जो कूद के मारता है उस बाघ और (वृकम्) बकरे आदि को मारनेहारा भेडि़या (उभौ) इन दिनों को (पतत्रिणम्) शीघ्र चलने के लिये बहुवेग वाले और (श्येनम्) शीघ्र धावन करके अन्य पक्षियों को मारनेहारे पक्षी (च) और (सिंहम्) हस्ति आदि को भी मारने वाले दुष्ट पशु को मार के प्रजा को (रक्षति) रक्षा करती है (सा) सो राणी (इमम्) इस राजा को (अंहसः) अपराध से (पातु) रक्षा करे॥१०॥
भावार्थ - जैसे शूरवीर राजा स्वयं व्याघ्रादि को मारने, न्याय से प्रजा की रक्षा करने और अपनी स्त्री को प्रसन्न करने को समर्थ होता है, वैसे ही राजा की राणी भी होवे। जैसे अच्छे प्रिय आचरण से राणी अपने पति राजा को प्रमाद से पृथक् करके प्रसन्न करती है, वैसे राजा भी अपनी स्त्री को सदा प्रसन्न करे॥१०॥
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