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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 84
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    पय॑सा शु॒क्रम॒मृतं॑ ज॒नित्र॒ꣳ सुर॑या॒ मूत्रा॑ज्जनयन्त॒ रेतः॑। अपाम॑तिं दुर्म॒तिं बाध॑माना॒ऽऊव॑ध्यं॒ वात॑ꣳ स॒ब्वं तदा॒रात्॥८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पय॑सा। शु॒क्रम्। अ॒मृत॑म्। ज॒नित्र॑म्। सुर॑या। मूत्रा॑त्। ज॒न॒य॒न्त॒। रेतः॑। अप॑। अम॑तिम्। दु॒र्म॒तिमिति॑ दुःऽम॒तिम्। बाध॑मानाः। ऊव॑ध्यम्। वात॑म्। स॒ब्व᳕म्। तत्। आ॒रात् ॥८४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पयसा शुक्रममृतठञ्जनित्रँ सुरया मूत्राज्जनयन्त रेतः । अपामतिन्दुर्मतिम्बाधमाना ऊवध्यँवातँ सब्वन्तदारात् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पयसा। शुक्रम्। अमृतम्। जनित्रम्। सुरया। मूत्रात्। जनयन्त। रेतः। अप। अमतिम्। दुर्मतमिति दुःऽमतिम्। बाधमानाः। ऊवध्यम्। वातम्। सब्वम्। तत्। आरात्॥८४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 84
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    पदार्थ -
    जो विद्वान् लोग (अमतिम्) नष्टबुद्धि (दुर्मतिम्) वा दुष्टबुद्धि को (अप, बाधमानाः) हटाते हुए जो (ऊवध्यम्) ऐसा है कि जिससे परिआं अंगुल आदि काटे जायें अर्थात् बहुत नाश करने का साधन (वातम्) प्राप्त (सब्वम्) सब पदार्थों में सम्बन्ध वाला (पयसा) जल दुग्ध वा (सुरया) सोमलता आदि ओषधी के रस से उत्पन्न हुए (मूत्रात्) मूत्राधार इन्द्रिय से (जनित्रम्) सन्तानोत्पत्ति का निमित्त (अमृतम्) अल्पमृत्युरोगनिवारक (शुक्रम्) शुद्ध (रेतः) वीर्य है, (तत्) उस को (आरात्) समीप से (जनयन्त) उत्पन्न करते हैं, वे ही प्रजा वाले होते हैं॥८४॥

    भावार्थ - जो मनुष्य दुर्गुण और दुष्ट सङ्गों को छोड़ कर व्यभिचार से दूर रहते हुए वीर्य को बढ़ा के सन्तानों को उत्पन्न करते हैं, वे अपने कुल को प्रशंसित करते हैं॥८४॥

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