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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 64
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    यम॑ग्ने कव्यवाहन॒ त्वं चि॒न्मन्य॑से र॒यिम्। तन्नो॑ गी॒र्भिः श्र॒वाय्यं॑ देव॒त्रा प॑नया॒ युज॑म्॥६४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम्। अ॒ग्ने॒। क॒व्य॒वा॒ह॒नेति॑ कव्यऽवाहन। त्वम्। चित्। मन्य॑से। र॒यिम्। तम्। नः॒। गी॒र्भिरिति॑ गीः॒ऽभिः। श्र॒वाय्य॑म्। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। प॒न॒य॒। युज॑म् ॥६४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमग्ने कव्यवाहन त्वञ्चिन्मन्यसे रयिम् । तन्नो गीर्भिः श्रवाय्यन्देवत्रा पनया युजम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यम्। अग्ने। कव्यवाहनेति कव्यऽवाहन। त्वम्। चित्। मन्यसे। रयिम्। तम्। नः। गीर्भिरिति गीःऽभिः। श्रवाय्यम्। देवत्रेति देवऽत्रा। पनय। युजम्॥६४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 64
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    पदार्थ -
    हे (कव्यवाहन) बुद्धिमानों के समीप उत्तम पदार्थ पहुँचानेहारे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशयुक्त! (त्वम्) आप (गीर्भिः) कोमल वाणियों से (श्रवाय्यम्) सुनाने योग्य (देवत्रा) विद्वानों में (युजम्) युक्त करने योग्य (यम्) जिस (रयिम्) ऐश्वर्य्य को (मन्यसे) जानते हो, (तम्) उसको (चित्) भी (नः) हमारे लिये (पनय) कीजिये॥६४॥

    भावार्थ - पिता आदि ज्ञानी लोगों को चाहिये कि पुत्रों और सत्पात्रों से प्रशंसित धन का सञ्चय करें, उस धन से उत्तम विद्वानों को ग्रहण कर, उनको सत्यधर्म के उपदेशक बनाके विद्या और धर्म का प्रचार करें और करावें॥६४॥

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