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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 8
    ऋषिः - आभूतिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - निचृत पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    8

    उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्याश्वि॒नं तेजः॑ सारस्व॒तं वी॒र्यमै॒न्द्रं बल॑म्। ए॒ष ते॒ योनि॒र्मोदा॑य त्वान॒न्दाय॑ त्वा॒ मह॑से त्वा॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒या॒मगृ॑हीतः। अ॒सि॒। आ॒श्वि॒नम्। तेजः॑। सा॒र॒स्व॒तम्। वी॒र्य᳖म्। ऐ॒न्द्रम्। बल॑म्। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। मोदा॑य। त्वा॒। आ॒न॒न्दायेत्या॑ऽऽन॒न्दाय॑। त्वा॒। मह॑से। त्वा॒ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपयामगृहीतो स्याश्विनन्तेजः सारस्वतँवीर्यऐन्द्रम्बलम् । एष ते योनिर्मादाय त्वानन्दाय त्वा महसे त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपयामगृहीतः। असि। आश्विनम्। तेजः। सारस्वतम्। वीर्यम्। ऐन्द्रम्। बलम्। एषः। ते। योनिः। मोदाय। त्वा। आनन्दायेत्याऽऽनन्दाय। त्वा। महसे। त्वा॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 8
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    पदार्थ -
    हे राजप्रजाजन! जो तू (उपयामगृहीतः) प्राप्त धर्मयुक्त यमसम्बन्धी नियमों से संयुक्त (असि) है, जिस (ते) तेरा (एषः) यह (योनिः) घर है, उस तेरा जो (आश्विनम्) सूर्य और चन्द्रमा के रूप के समान (तेजः) तीक्ष्ण कोमल तेज (सारस्वतम्) विज्ञानयुक्त वाणी का (वीर्यम्) तेज (ऐन्द्रम्) बिजुली के समान (बलम्) बल हो, उस (त्वा) तुझ को (मोदाय) हर्ष के लिये (त्वा) तुझ को (आनन्दाय) परम सुख के अर्थ (त्वा) तुझे (महसे) महापराक्रम के लिये सब मनुष्य स्वीकार करें॥८॥

    भावार्थ - जो मनुष्य सूर्य-चन्द्रमा के समान तेजस्वी, विद्या पराक्रम वाले, बिजुली के तुल्य अति बलवान् होके आप आनन्दित हों और अन्य सब को आनन्द दिया करते हैं, वे यहां परमानन्द को भोगते हैं॥८॥

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