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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 90
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    अवि॒र्न मे॒षो न॒सि वी॒र्याय प्रा॒णस्य॒ पन्था॑ऽअ॒मृतो॒ ग्रहा॑भ्याम्। सर॑स्वत्युप॒वाकै॑र्व्या॒नं नस्या॑नि ब॒र्हिर्बद॑रैर्जजान॥९०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अविः॑। न। मे॒षः। न॒सि। वी॒र्या᳖य। प्रा॒णस्य॑। पन्थाः॑। अ॒मृतः॑। ग्रहा॑भ्याम्। सर॑स्वती। उ॒प॒वाकै॒रित्यु॑प॒ऽवाकैः॑। व्या॒नमिति॑ विऽआ॒नम्। नस्या॑नि। ब॒र्हिः। बद॑रैः। ज॒जा॒न॒ ॥९० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अविर्न मेषो नसि वीर्याय प्राणस्य पन्थमृतो ग्रहाभ्याम् । सरस्वत्युपवाकैर्व्यानन्नस्यानि बर्हिर्बदरैर्जजान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अविः। न। मेषः। नसि। वीर्याय। प्राणस्य। पन्थाः। अमृतः। ग्रहाभ्याम्। सरस्वती। उपवाकैरित्युपऽवाकैः। व्यानमिति विऽआनम्। नस्यानि। बर्हिः। बदरैः। जजान॥९०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 90
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    पदार्थ -
    जैसे (ग्रहाभ्याम्) ग्रहण करनेहारों के साथ (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञानयुक्त स्त्री (बदरैः) बेरों के समान (उपवाकैः) सामीप्यभाव किया जाय, जिनसे उन कर्मों से (जजान) उत्पत्ति करती है, वैसे जो (वीर्याय) वीर्य के लिये (नसि) नासिका में (प्राणस्य) प्राण का (अमृतः) नित्य (पन्थाः) मार्ग वा (मेषः) दूसरे से स्पर्द्धा करने वाला और (अविः) जो रक्षा करता है, उसके (न) समान (व्यानम्) शरीर में व्याप्त वायु (नस्यानि) नासिका के हितकारक धातु और (बर्हिः) बढ़ानेहारा उपयुक्त किया जाता है॥९०॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे धार्मिक न्यायाधीश प्रजा की रक्षा करता है, वैसे ही प्राणायामादि से अच्छे प्रकार सिद्ध किये हुए प्राण योगी की सब दुःखों से रक्षा करते हैं। जैसे विदुषी माता विद्या और अच्छी शिक्षा से अपने सन्तानों बढ़ाती है, वैसे अनुष्ठान किये हुए योग के अङ्ग योगियों को बढ़ाते हैं॥९०॥

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