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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 12
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    कुतः॒ केशा॒न्कुतः॒ स्नाव॒ कुतो॒ अस्थी॒न्याभ॑रत्। अङ्गा॒ पर्वा॑णि म॒ज्जानं॒ को मां॒सं कुत॒ आभ॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कुत॑: । केशा॑न् । कुत॑: । स्नाव॑: । कुत॑: । अस्थी॑नि । आ । अ॒भ॒र॒त् । अङ्गा॑ । पर्वा॑णि । म॒ज्जान॑म् । क: । मां॒सम् । कुत॑: । आ । अ॒भ॒र॒त् ॥१०.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुतः केशान्कुतः स्नाव कुतो अस्थीन्याभरत्। अङ्गा पर्वाणि मज्जानं को मांसं कुत आभरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुत: । केशान् । कुत: । स्नाव: । कुत: । अस्थीनि । आ । अभरत् । अङ्गा । पर्वाणि । मज्जानम् । क: । मांसम् । कुत: । आ । अभरत् ॥१०.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    (कुतः) किससे [किस उपादेय कारण से प्राणियों के] (केशान्) केशों को, (कुतः) कहाँ से (स्नाव) सूक्ष्मनाड़ी [वायु ले चलनेवाली नस], (कुतः) कहाँ से (अस्थीनि) हड्डियों को (आ अभरत्) उस [कर्त्ता परमेश्वर] ने लाकर धरा। (अङ्गा) अङ्गों, (पर्वाणि) जोड़ों, (मज्जानम्) मज्जा [हड्डी के भीतर के रस], और (मांसम्) मांस को (कः) कर्ता [प्रजापति परमेश्वर] ने (कुतः) कहाँ से (आ अभरत्) ला कर धरा ॥१२॥

    भावार्थ - परमेश्वर प्राणियों के शरीर के बड़े और छोटे अवयव किस सामग्री से बनाता है। इस का भी उत्तर अगले मन्त्र में है ॥१२॥यह मन्त्र १०, ११ तथा १२ का उत्तर है ॥

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