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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 9
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    इन्द्रा॒दिन्द्रः॒ सोमा॒त्सोमो॑ अ॒ग्नेर॒ग्निर॑जायत। त्वष्टा॑ ह जज्ञे॒ त्वष्टु॑र्धा॒तुर्धा॒ताजा॑यत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑त् । इन्द्र॑: । सोमा॑त् । सोम॑: । अ॒ग्ने: । अ॒ग्नि: । अ॒जा॒य॒त॒ । त्वष्टा॑ । ह॒ । ज॒ज्ञे॒ । त्वष्टु॑: । धा॒तु: । धा॒ता । अ॒जा॒य॒त॒ ॥१०.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रादिन्द्रः सोमात्सोमो अग्नेरग्निरजायत। त्वष्टा ह जज्ञे त्वष्टुर्धातुर्धाताजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रात् । इन्द्र: । सोमात् । सोम: । अग्ने: । अग्नि: । अजायत । त्वष्टा । ह । जज्ञे । त्वष्टु: । धातु: । धाता । अजायत ॥१०.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (इन्द्रात्) इन्द्र [पूर्वकल्पवर्ती मेघ] से (इन्द्रः) इन्द्र [मेघ], (सोमात्) सोम [प्रेरक वायु] से (सोमः) सोम [प्रेरक वायु], (अग्नेः) अग्नि [सूर्य आदि तेज] से (अग्निः) अग्नि [सूर्य आदि तेज] (अजायत) उत्पन्न हुआ है। (त्वष्टा) त्वष्टा [शरीर आदि का कारण पृथिवी तत्त्व] (ह) निश्चय करके (त्वष्टुः) त्वष्टा [शरीर आदि के कारण पृथिवी तत्त्व] से (जज्ञे) प्रकट हुआ है और (धातुः) धाता [धारण करनेवाले आकाश] से (धाता) धाता [धारण करनेवाला आकाश] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥९॥

    भावार्थ - जो पदार्थ प्रलय में परमाणुरूप थे, वे पूर्व कल्प के समान इस कल्प में भी ईश्वरसामर्थ्य से उत्पन्न हुए हैं ॥९॥ऋग्वेद १०।१९०।३। में ऐसा वर्णन है−(सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्) सूर्य और चन्द्रमा को धाता [सर्वधारक परमेश्वर] ने पूर्वकल्प के समान रचा है ॥

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