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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 31
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    सूर्य॒श्चक्षु॒र्वातः॑ प्रा॒णं पुरु॑षस्य॒ वि भे॑जिरे। अथा॒स्येत॑रमा॒त्मानं॑ दे॒वाः प्राय॑च्छन्न॒ग्नये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑: । चक्षु॑: । वात॑: । प्रा॒णम् । पुरु॑षस्य । वि । भे॒जि॒रे॒ । अथ॑ । अ॒स्य॒ । इत॑रम् । आ॒त्मान॑म् । दे॒वा: । प्र । अ॒य॒च्छ॒न् । अ॒ग्नये॑ ॥१०.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यश्चक्षुर्वातः प्राणं पुरुषस्य वि भेजिरे। अथास्येतरमात्मानं देवाः प्रायच्छन्नग्नये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्य: । चक्षु: । वात: । प्राणम् । पुरुषस्य । वि । भेजिरे । अथ । अस्य । इतरम् । आत्मानम् । देवा: । प्र । अयच्छन् । अग्नये ॥१०.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 31

    पदार्थ -
    (सूर्यः) सूर्य ने (पुरुषस्य) [जीवात्मा] के (चक्षुः) नेत्र को, (वातः) वायु ने (प्राणम्) प्राण [उसके श्वास प्रश्वास] को (वि) विशेष करके (भेजिरे=भेजे) स्वीकार किया। (अथ) फिर (देवाः) दिव्य पदार्थों [दूसरे इन्द्रिय आदि] ने (अस्य) इस [जीवात्मा] का (इतरम्) दूसरा (आत्मानम्) शरीर का अवयवसमूह (अग्नये) अग्नि को (प्र अयच्छन्) दान किया ॥३१॥

    भावार्थ - ईश्वरनियम से जैसे शरीर में सूर्य का प्रधानत्व नेत्र पर और वायु का श्वास-प्रश्वास पर है, इसी प्रकार अग्नि तत्त्व की विशेषता शरीर के अन्य सब अङ्गों में है ॥३१॥

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