Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    प्रा॑णापा॒नौ चक्षुः॒ श्रोत्र॒मक्षि॑तिश्च॒ क्षिति॑श्च॒ या। व्या॑नोदा॒नौ वाङ्मन॒स्ते वा आकू॑ति॒माव॑हन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒णा॒पा॒नौ । चक्षु॑: । श्रोत्र॑म् । अक्षि॑ति: । च॒ । क्षिति॑: । च॒ । या । व्या॒न॒ऽउ॒दा॒नौ । वाक् । मन॑: । ते । वै । आऽकू॑तिम् । आ । अ॒व॒ह॒न् ॥१०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणापानौ चक्षुः श्रोत्रमक्षितिश्च क्षितिश्च या। व्यानोदानौ वाङ्मनस्ते वा आकूतिमावहन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणापानौ । चक्षु: । श्रोत्रम् । अक्षिति: । च । क्षिति: । च । या । व्यानऽउदानौ । वाक् । मन: । ते । वै । आऽकूतिम् । आ । अवहन् ॥१०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (प्राणापानौ) प्राण और अपान [भीतर और बाहिर जानेवाला श्वास], (चक्षुः) नेत्र, (श्रोत्रम्) कान, (च) और (या) जो (अक्षितिः) [सुख की] निर्हानि (च) और (क्षितिः) [दुःख की] हानि। (व्यानोदानौ) व्यान [सब नाड़ियों में रस पहुँचानेवाला वायु] और (वाक्) वाणी और (मनः) मन, (ते) इन सब ने (वै) निश्चय करके (आकूतिम्) सङ्कल्प [प्राणी के मनोविचार] को (आ) सब ओर से (अवहन्) प्राप्त कराया ॥४॥

    भावार्थ - प्राणियों के विहित कर्मों की सिद्धि के लिये परमेश्वर ने प्राण, अपान आदि बनाये। मन्त्र १ का उत्तर समाप्त हुआ ॥४॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आ चुका है-अ० ११।७।२५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top