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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 16
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    यत्तच्छरी॑र॒मश॑यत्सं॒धया॒ संहि॑तं म॒हत्। येने॒दम॒द्य रोच॑ते॒ को अ॑स्मि॒न्वर्ण॒माभ॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । तत् । शरी॑रम् । अश॑यत् । स॒म्ऽधया॑ । सम्ऽहि॑तम् । म॒हत् । येन॑ । इ॒दम् । अ॒द्य । रोच॑ते । क: । अ॒स्मि॒न् । वर्ण॑म् । आ । अ॒भ॒र॒त् ॥१०.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्तच्छरीरमशयत्संधया संहितं महत्। येनेदमद्य रोचते को अस्मिन्वर्णमाभरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । तत् । शरीरम् । अशयत् । सम्ऽधया । सम्ऽहितम् । महत् । येन । इदम् । अद्य । रोचते । क: । अस्मिन् । वर्णम् । आ । अभरत् ॥१०.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    (यत्) जब (संधया) जोड़नेवाली [शक्ति, परमेश्वर] करके (संहितम्) जोड़ा हुआ (तत्) वह (महत्) महान् [समर्थ] (शरीरम्) शरीर (अशयत्) पड़ा हुआ था, [तब] (येन) जिस [रंग] से (इदम्) यह [शरीर] (अद्य) आज (रोचते) रुचता है, (कः) किसने (अस्मिन्) इस [शरीर] में (वर्णम्) वर्ण [रंग] (आ अभरत्) सब ओर से भर दिया ॥१६॥

    भावार्थ - जब शरीर अवयवों सहित चर्म में लपेटकर रख दिया गया, फिर उस पर गोरा, काला, पीला आदि रंग किसने चढ़ाया। इस मन्त्र का उत्तर अगले मन्त्र में है ॥१६॥

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