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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 2/ मन्त्र 13
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - द्विपदार्ची जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    उषाः पुं॑श्च॒लीमन्त्रो॑ माग॒धो वि॒ज्ञानं॒ वासोऽह॑रु॒ष्णीषं॒ रात्री॒ केशा॒ हरि॑तौ प्रव॒र्तौक॑ल्म॒लिर्म॒णिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒षा: । पुं॒श्च॒ली । मन्त्र॑: । मा॒ग॒ध: । वि॒ऽज्ञान॑म् । वास॑: । अह॑: । उ॒ष्णीष॑म् । रात्री॑ । केशा॑: । हरि॑तौ । प्र॒ऽव॒र्तौ । क॒ल्म॒लि: । म॒णि: ॥२.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषाः पुंश्चलीमन्त्रो मागधो विज्ञानं वासोऽहरुष्णीषं रात्री केशा हरितौ प्रवर्तौकल्मलिर्मणिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषा: । पुंश्चली । मन्त्र: । मागध: । विऽज्ञानम् । वास: । अह: । उष्णीषम् । रात्री । केशा: । हरितौ । प्रऽवर्तौ । कल्मलि: । मणि: ॥२.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 13

    पदार्थ -
    (उषाः) हिंसा (पुंश्चली) पुंश्चली [पर पुरुषों में जानेवाली व्यभिचारिणी स्त्री, तथापरस्त्रीगामी व्यभिचारी पुरुष के समान घृणित], (मन्त्रः) मननगुण (मागधः) भाट [स्तुतिपाठक के समान], (विज्ञानम्) विज्ञान [विवेक] (वासः) वस्त्र [समान], (अहः)दिन (उष्णीषम्) [धूप रोकनेवाली] पगड़ी [समान], (रात्री) रात्री (केशाः) केश [समान], (हरितौ) दोनों धारण आकर्षण गुण (प्रवर्तौ) दो गोल कुण्डल [कर्णभूषणसमान] और (कल्मलिः) [गति देनेवाली] तारों की झलक (मणिः) मणि [मणियों के हारसमान] ॥१–३॥

    भावार्थ - जो मनुष्य परमात्मा केज्ञान के साथ अविद्या के त्याग और विद्या की प्राप्ति से योग्य पदार्थों केउपकार और अयोग्यों के अपकार को जानकर अपना कर्तव्य करता है, वह संसार मेंकीर्तिमान् और यशस्वी होता है ॥१२-१–४॥

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