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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 2/ मन्त्र 22
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    तं श्यै॒तं च॑नौध॒सं च॑ सप्त॒र्षय॑श्च॒ सोम॑श्च॒ राजा॑नु॒व्यचलन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । श्यै॒तम् । च॒ । नौ॒ध॒सम् । च॒ । स॒प्त॒ऽऋ॒षय॑: । च॒ । सोम॑:। च॒ । राजा॑ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥२.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं श्यैतं चनौधसं च सप्तर्षयश्च सोमश्च राजानुव्यचलन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । श्यैतम् । च । नौधसम् । च । सप्तऽऋषय: । च । सोम:। च । राजा । अनुऽव्यचलन् ॥२.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 22

    पदार्थ -
    (श्यैतम्) श्यैत [सद्गति बतानेवाले वेदज्ञान] (च च) और (नौधसम्) नौधस [ऋषियों का हितकारीमोक्षज्ञान] (च) और (सप्तर्षयः) सात ऋषि [छह इन्द्रियाँ औरसातवीं बुद्धिअर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] (च) और (राजा) राजा [ऐश्वर्यवान्] (सोमः) प्रेरक मनुष्य (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे-पीछे चले ॥२२॥

    भावार्थ - मनुष्य वेदज्ञान सेपरमात्मा का ज्ञान प्राप्त करके इन्द्रियों और आत्मा की शक्तियों को बढ़ाता हुआपरमेश्वर के आश्रय से बढ़ती करता जावे ॥२२॥

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