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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 2/ मन्त्र 19
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - द्विपदार्ची जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    इरा पुं॑श्च॒लीहसो॑ माग॒धो वि॒ज्ञानं॒ वासोऽह॑रु॒ष्णीषं॒ रात्री॒ केशा॒ हरि॑तौ प्रव॒र्तौक॑ल्म॒लिर्म॒णिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒रा । पुं॒श्च॒ली । हस॑: । मा॒ग॒ध: । वि॒ऽज्ञान॑म् । वास॑: । अह॑: । उ॒ष्णीष॑म् । रात्री॑ । केशा॑: । हरि॑तौ । प्र॒ऽव॒र्तौ । क॒ल्म॒लि: । म॒णि: ॥२.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इरा पुंश्चलीहसो मागधो विज्ञानं वासोऽहरुष्णीषं रात्री केशा हरितौ प्रवर्तौकल्मलिर्मणिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईरा । पुंश्चली । हस: । मागध: । विऽज्ञानम् । वास: । अह: । उष्णीषम् । रात्री । केशा: । हरितौ । प्रऽवर्तौ । कल्मलि: । मणि: ॥२.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 19

    पदार्थ -
    (इरा) मदिरा [मद्यवस्तु] (पुंश्चली) पुंश्चली [पर पुरुषों में जानेवाली व्यभिचारिणी स्त्रीतथा परस्त्रीगामी व्यभिचारी पुरुष के समान घृणित], (हसः) हास्यरस (मागधः) भाट [स्तुतिपाठक के समान], (विज्ञानम्) विज्ञान [विवेक] (वासः) वस्त्र [समान], (अहः)दिन (उष्णीषम्) [धूप रोकनेवाली] पगड़ी [समान], (रात्री) रात्री (केशाः) केश [समान], (हरितौ) दोनों धारण आकर्षण गुण (प्रवर्तौ) दो गोलकुण्डल [कर्णभूषण समान]और (कल्मलिः) [गति देनेवाली] तारों की झलक (मणिः) मणि [मणियों के हार समान]॥१–९॥

    भावार्थ - मनुष्य वेदज्ञान औरमोक्षज्ञान द्वारा परमात्मा के प्राप्त करके दुष्कर्मों के सर्वथा त्याग औरसत्कर्मों के निरन्तर निष्काम अनुष्ठान से संसार में आनन्द पाता है ॥१˜८, १९, २०॥

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