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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स उद॑तिष्ठ॒त्सदक्षि॑णां॒ दिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । उत् । अ॒ति॒ष्ठ॒त् । स: । दक्षि॑णाम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥२.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स उदतिष्ठत्सदक्षिणां दिशमनु व्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । उत् । अतिष्ठत् । स: । दक्षिणाम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥२.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (उत् अतिष्ठत्) खड़ा हुआ, (सः) वह (दक्षिणाम्) दाहिनी [वा दक्षिण] (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥९॥

    भावार्थ - मनुष्य परमात्मा कोअपनी दाहिनी वा दक्षिण दिशा में व्यापक जानकर आगे बढ़े ॥९॥

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