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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 20
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - पत्नी देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    काण्डा॑त्काण्डात्प्र॒रोह॑न्ती॒ परु॑षःपरुष॒स्परि॑। ए॒वा नो॑ दूर्वे॒ प्रत॑नु स॒हस्रे॑ण श॒तेन॑ च ॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    काण्डा॑त्काण्डा॒दिति॒ काण्डा॑त्ऽकाण्डात्। प्र॒रोह॒न्तीति॑ प्र॒ऽरोह॑न्ती। परु॑षःपरुष॒ इति॒ परु॑षःऽपरुषः। परि॑। ए॒व। नः॒। दू॒र्वे॒। प्र॒। त॒नु॒। स॒हस्रे॑ण। श॒तेन॑। च॒ ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषःपरुषस्परि । एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च॥


    स्वर रहित पद पाठ

    काण्डात्काण्डादिति काण्डात्ऽकाण्डात्। प्ररोहन्तीति प्रऽरोहन्ती। परुषःपरुष इति परुषःऽपरुषः। परि। एव। नः। दूर्वे। प्र। तनु। सहस्रेण। शतेन। च॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 20
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে স্ত্রি ! তুমি যেমন (সহস্রেণ) অসংখ্যাত (চ) এবং (শতেন) বহু প্রকার সহ (কান্ডাৎকান্ডাৎ) সকল অবয়বসমূহ এবং (পরুষঃ পরুষঃ) গ্রন্থি গ্রন্থি দ্বারা (পরি) সর্ব দিক দিয়া (প্ররোহন্তী) অত্যন্ত বর্ধমানা (দূর্বে) দূর্বা ঘাস হইয়া থাকে সেইরূপ (এব)(নঃ) আমাদিগকে পুত্র পৌত্র ও ঐশ্বর্য্য দ্বারা (প্রতনু) বিস্তার কর ॥ ২০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন দূর্বা ওষধি রোগের নাশ এবং সুখ বৃদ্ধিকারী সুন্দর বিস্তারযুক্ত চির স্থায়ী হইয়া বৃদ্ধি পায় সেইরূপই বিদ্বান্ স্ত্রীর উচিত যে, বহু প্রকারে নিজ কুল বৃদ্ধি করাক ॥ ২০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - কাণ্ডা॑ৎকাণ্ডাৎপ্র॒রোহ॑ন্তী॒ পর॑ুষঃপরুষ॒স্পরি॑ ।
    এ॒বা নো॑ দূর্বে॒ প্র ত॑নু স॒হস্রে॑ণ শ॒তেন॑ চ ॥ ২০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - কাণ্ডাৎকাণ্ডাদিত্যস্যাऽগ্নির্ঋষিঃ । পত্নী দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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