Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 35
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - जातवेदाः देवताः छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः
    8

    इ॒षे रा॒ये र॑मस्व॒ सह॑से द्यु॒म्नऽ ऊ॒र्जेऽ अप॑त्याय। स॒म्राड॑सि स्व॒राड॑सि सारस्व॒तौ त्वोत्सौ॒ प्राव॑ताम्॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒षे। रा॒ये। र॒म॒स्व॒। सह॑से। द्यु॒म्ने। ऊ॒र्जे। अप॑त्याय। स॒म्राडिति॑ स॒म्ऽराट्। अ॒सि॒। स्व॒राडिति॑ स्व॒ऽराट्। अ॒सि॒। सा॒र॒स्व॒तौ। त्वा॒। उत्सौ॑। प्र। अ॒व॒ता॒म् ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इषे राये रमस्व सहसे द्युम्नऽऊर्जे अपत्याय । सम्राडसि स्वराडसि सारस्वतौ त्वोत्सौ प्रावताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इषे। राये। रमस्व। सहसे। द्युम्ने। ऊर्जे। अपत्याय। सम्राडिति सम्ऽराट्। असि। स्वराडिति स्वऽराट्। असि। सारस्वतौ। त्वा। उत्सौ। प्र। अवताम् ॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 35
    Acknowledgment

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- বিবাহ করিয়া নারী-পুরুষ উভয়ে পারস্পরিক প্রীতিসহ বিদ্বান্ হইয়া বসন্ত ঋতুতে পুরুষকার দ্বারা ধনবান্ শ্রেষ্ঠগুণদ্বারা যুক্ত হইয়া একে অপরের রক্ষা করিয়া ধর্ম্মানুকূলতা পূর্বক ব্যবহার করিয়া সন্তানদিগকে উৎপন্ন করিয়া এই সংসারে নিত্য ক্রীড়া করিবে ॥ ৩৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ই॒ষে রা॒য়ে র॑মস্ব॒ সহ॑সে দ্যু॒ম্নऽ ঊ॒র্জেऽ অপ॑ত্যায় ।
    স॒ম্রাড॑সি স্ব॒রাড॑সি সারস্ব॒তৌ ত্বোৎসৌ॒ প্রাব॑তাম্ ॥ ৩৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইষে রায় ইত্যস্য গোতম ঋষিঃ । জাতবেদা দেবতাঃ । নিচৃদ্বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top