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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    कृ॒णु॒ष्व पाजः॒ प्रसि॑तिं॒ न पृ॒थ्वीं या॒हि राजे॒वाम॑वाँ॒२ऽ इभो॑न। तृ॒ष्वीमनु॒ प्रसि॑तिं द्रूणा॒नोऽस्ता॑सि॒ विध्य॑ र॒क्षस॒स्तपि॑ष्ठैः॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒णु॒ष्व। पाजः॑। प्रसि॑ति॒मिति॒ प्रऽसि॑तिम्। न। पृ॒थ्वीम्। या॒हि। राजे॒वेति॒ राजा॑ऽ इव। अम॑वा॒नित्यम॑ऽवान्। इभे॑न। तृ॒ष्वीम्। अनु॑। प्रसि॑ति॒मिति॒ प्रऽसि॑तिम्। द्रू॒णा॒नः। अस्ता॑। अ॒सि॒। विध्य॑। र॒क्षसः॑। तपि॑ष्ठैः ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृणुष्व पाजः प्रसितिन्न पृथ्वीँयाहि राजेवामवाँऽइभेन । तृष्वीमनु प्रसितिन्द्रूणानो स्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठैः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कृणुष्व। पाजः। प्रसितिमिति प्रऽसितिम्। न। पृथ्वीम्। याहि। राजेवेति राजाऽ इव। अमवानित्यमऽवान्। इभेन। तृष्वीम्। अनु। प्रसितिमिति प्रऽसितिम्। द्रूणानः। अस्ता। असि। विध्य। रक्षसः। तपिष्ठैः॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে সেনাপতে ! আপনি (পাজঃ) বল (কৃণুষ্ব) করুন (প্রসিতিম্) জালের (ন) সমান (পৃথ্বীম্) ভূমিকে (য়াহি) প্রাপ্ত হউন যদ্দ্বারা আপনি (অস্তা) প্রক্ষিপ্তকারী (অসি) হন্ । ইহারা দ্বারা (ইভেন) হস্তী সহ (অমবান্) বহু দূত যুক্ত (রাজেব) রাজার সমান (তপিষ্ঠৈঃ) অত্যন্ত দুঃখদায়ী শস্ত্র দ্বারা (প্রসিতিম্) জালের বন্ধন সিদ্ধ করিয়া (রক্ষসঃ) শত্রুদিগকে (দ্রুণানঃ) মারিয়া (তৃষ্বীম্) শীঘ্র (অনু) সম্মুখ হইয়া (বিধ্য) তাড়না করুন ॥ ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । সেনাপতির উচিত যে, রাজার সমান পূর্ণ বলযুক্ত হইয়া অনেক জাল দ্বারা শত্রুদিগকে বাঁধিয়া তাহাদিগকে বাণাদি শস্ত্র দ্বারা তাড়না দিবে এবং বন্দীগৃহে বন্ধ করিয়া শ্রেষ্ঠ পুরুষদিগের পালন করিবে ॥ ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - কৃ॒ণু॒ষ্ব পাজঃ॒ প্রসি॑তিং॒ ন পৃ॒থ্বীং য়া॒হি রাজে॒বাম॑বাঁ॒২ऽ ইভে॑ন ।
    তৃ॒ষ্বীমনু॒ প্রসি॑তিং দ্রূণা॒নোऽস্তা॑সি॒ বিধ্য॑ র॒ক্ষস॒স্তপি॑ষ্ঠৈঃ ॥ ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - কৃণুষ্বেত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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