यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 9
ऋषिः - वामदेव ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
122
कृ॒णु॒ष्व पाजः॒ प्रसि॑तिं॒ न पृ॒थ्वीं या॒हि राजे॒वाम॑वाँ॒२ऽ इभो॑न। तृ॒ष्वीमनु॒ प्रसि॑तिं द्रूणा॒नोऽस्ता॑सि॒ विध्य॑ र॒क्षस॒स्तपि॑ष्ठैः॥९॥
स्वर सहित पद पाठकृ॒णु॒ष्व। पाजः॑। प्रसि॑ति॒मिति॒ प्रऽसि॑तिम्। न। पृ॒थ्वीम्। या॒हि। राजे॒वेति॒ राजा॑ऽ इव। अम॑वा॒नित्यम॑ऽवान्। इभे॑न। तृ॒ष्वीम्। अनु॑। प्रसि॑ति॒मिति॒ प्रऽसि॑तिम्। द्रू॒णा॒नः। अस्ता॑। अ॒सि॒। विध्य॑। र॒क्षसः॑। तपि॑ष्ठैः ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कृणुष्व पाजः प्रसितिन्न पृथ्वीँयाहि राजेवामवाँऽइभेन । तृष्वीमनु प्रसितिन्द्रूणानो स्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठैः ॥
स्वर रहित पद पाठ
कृणुष्व। पाजः। प्रसितिमिति प्रऽसितिम्। न। पृथ्वीम्। याहि। राजेवेति राजाऽ इव। अमवानित्यमऽवान्। इभेन। तृष्वीम्। अनु। प्रसितिमिति प्रऽसितिम्। द्रूणानः। अस्ता। असि। विध्य। रक्षसः। तपिष्ठैः॥९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
राजपुरुषैः कथं शत्रवो बन्धनीया इत्याह॥
अन्वयः
हे सेनापते! त्वं पाजः कृणुष्व प्रसितिं न पृथ्वीं याहि। यतस्वमस्तासि तस्मादिभेनामवान् राजेव तपिष्ठैः प्रसितिं संसाध्य रक्षसश्च द्रूणानस्तृष्वीमनुविध्य॥९॥
पदार्थः
(कृणुष्व) कुरुष्व (पाजः) बलम्। पातेर्बले जुच् च॥ (उणा॰४।२१०) इत्यसुन् (प्रसितिम्) जालम्। प्रसितिः प्रसयनात् तन्तुर्वा जालं वा॥ (निरु॰६।१२) (न) इव (पृथ्वीम्) भूमिम् (याहि) प्राप्नुहि (राजेव) (अमवान्) बहवः सचिवा विद्यन्ते यस्य तद्वत् (इभेन) हस्तिना (तृष्वीम्) क्षिप्रगतिम्। तृष्विति क्षिप्रनामसु पठितम्॥ (निघं॰२।१५) ततो वोतो गुणवचनात् [अष्टा॰४.१.४४] इति ङीष् (अनु) (प्रसितिम्) बन्धनं जालम् (द्रूणानः) हिंसन् (अस्ता) प्रक्षेप्ता (असि) (विध्य) ताडय (रक्षसः) शत्रून् (तपिष्ठैः) अतिशयेन संतापकरैः शस्त्रैः। अयं मन्त्रः निरु॰६।१२ व्याख्यातः। [अयं मन्त्रः शत॰७.४.१.३३ व्याख्यातः]॥९॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। राजवत्सेनापतिः पूर्णं बलं संपाद्यानेकैः पाशैः शत्रून् बध्वा शरादिभिर्विध्वा कारागृहे संस्थाप्य श्रेष्ठान् पालयेत्॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
राजपुरुषों को शत्रु कैसे बांधने चाहियें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे सेनापते! आप (पाजः) बल को (कृणुष्व) कीजिये (प्रसितिम्) जाल के (न) समान (पृथ्वीम्) भूमि को (याहि) प्राप्त हूजिये, जिससे आप (अस्ता) फेंकने वाले (असि) हैं, इससे (इभेन) हाथी के साथ (अमवान्) बहुत दूतों वाले (राजेव) राजा के समान (तपिष्ठैः) अत्यन्त दुःखदायी शस्त्रों से (प्रसितिम्) फाँसी को सिद्ध कर (रक्षसः) शत्रुओं को (द्रूणानः) मारते हुए (तृष्वीम्) शीघ्र (अनु) सन्मुख होकर (विध्य) ताड़ना कीजिये॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सेनापति को चाहिये कि राजा के समान पूर्ण बल से युक्त हो अनेक फांसियों से शत्रुओं को बांध उनको बाण आदि शस्त्रों से ताड़ना दे और बन्दीगृह में बन्द कर के श्रेष्ठ पुरुषों को पाले॥९॥
विषय
बल प्राप्त कर दुष्टों का दमन करना और मातङ्ग बल से प्रयाण ।राज्यवृद्धि और शत्रु को तीव्रास्त्रों से नाश करने का उपदेश ।
भावार्थ
हे राजन् ! हे सेनापते ! तू ( पाजः कृणुष्वः) बल को उत्पन्न कर, राष्ट्र के पालन और दुष्ट दमन के सामर्थ्य को उत्पन्न कर तू ( अमवान् ) सहायक अमात्य पुरुषों से युक्त होकर ( प्रसितिम् ) सुप्रबद्ध, सुव्यवस्थित पृथिवी को (इभेन ) हस्तिबल से ( राजा इव ) राजा के समान (याहि) प्राप्त हो । अथवा - ( प्रसितिं न पाजः कृणुष्व ) तू अपने बल को विस्तृत जाल के समान बना। जिसमें समस्त प्रजाएं बंधे। ( राजा इव भवान् इभेन पृथिवीं याहि ) राजा के समान सहायक पुरुषों से युक्त होकर हस्ति- बल से पृथ्वी को प्राप्त कर और पृथ्वी, अति वेगवाली, बलवती ( प्रसिति- म् अनु ) उत्कृष्ट बन्धनों से युक्त राजव्यवस्था के अनुसार ( रक्षसः) विघ्नकारी दुष्ट पुरुषों को ( द्रणानः ) विनाश करता हुआ तू उनपर ( अस्तासि ) बाण आदि शस्त्रों के फेंकने वाला ही हो और ( रक्षसः ) विघ्नकारी पुरुषों को (तपिष्ठैः ) अति संतापजनक शस्त्रों से ( विध्य ) ताड़ना कर, दण्डित कर ॥ शत० ७ । ४ । १ । ३४ ।
टिप्पणी
वामदेव ऋषिः । द० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
देवा वामदेवश्च ऋषयः । अग्निः प्रतिसरो वा देवता । रक्षोघ्नी ऋक् । भुरिक् पंक्ति: । त्रिष्टुप् वा । पञ्चमो धैवतो वा ।
विषय
बन्धन- विनाश, ग्रन्थि-विनाश
पदार्थ
१. गत मन्त्र में हिरण्यगर्भ प्रकाशमय लोकों में पहुँचने की कामना करता है, जिन लोकों में 'ज्ञान है, शान्ति' है। ऐसा व्यक्ति ही वहाँ पहुँच सकता है जो प्रस्तुत मन्त्र के शब्दों में प्रभु की प्रेरणा को सुनकर 'वामदेव' बनता है सारे दिव्य गुणों को अपनानेवाला बनता है। २. प्रभु इससे कहते हैं कि (पाज:) = बल को कृणुष्व सम्पादित कर, शक्तिशाली बन । शक्ति ही तुझे वामदेव बनाएगी। ३. शक्ति के सम्पादन के लिए ही (पृथ्वीम्) = इस पृथिवी को, इन पार्थिव भोगों को (प्रसितिं न) = बन्धन की भाँति याहि प्राप्त हो। इन पार्थिव भोगों को तू बन्धन समझनेवाला हो । शरीर के लिए ये कुछ मात्रा में आवश्यक हो जाते हैं, परन्तु तूने इन्हें बन्धन समझते हुए इनमें फँसना नहीं। भूख को तू रोग समझकर उसके लिए भोजन को औषधवत् ही ग्रहण करना । ४. (राजा इव) = तू अपने इस जीवन में राजा की भाँति बन। तूने इन्द्रियों का गुलाम नहीं बनना। ५. अमवान् इन्द्रियों का गुलाम न बनने के कारण तू 'अम' वाला हो [ अम=strength, power; vital air ], बल व प्राणशक्ति सम्पन्न हो । ६. (इभेन) = [इभ - fearless power] अपनी निर्भीक शक्ति के द्वारा (तृष्वीम्) = शीघ्र ही (प्रसितिम्) = बन्धन को (अनुद्रूणान:) = तू क्रमशः विनष्ट करनेवाला हो। एक-एक करके तू सब शत्रुओं को नष्ट कर डाल। ७. तू सचमुच अस्ता असि शत्रुओं को सुदूर फेंकनेवाला है। ८. (तपिष्ठैः) = अत्यन्त सन्तापक अस्त्रों से व प्राणायामादि परम तपों से (रक्षसः) = इन शत्रुओं को व राक्षसी वृत्तियों को विध्य-बींध डाल - राक्षसी वृत्तियों को तू समाप्त कर डाल ।
भावार्थ
भावार्थ- शक्तिशाली बन। सांसारिक भोगों को बन्धन समझ । जितेन्द्रिय बनकर बन्धनों को नष्ट कर डाल
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. सेनापतीने राजाप्रमाणे पूर्ण बलवान बनून शत्रूंना फास घालून पकडावे. बाण इत्यादी शस्त्रांनी मारावे. तुरुंगात बंदिस्त करावे व श्रेष्ठ माणसांचे रक्षण करावे.
विषय
राजपुरुषांनी शत्रूंना कशाप्रकारे वश करावे वा बंदिस्त करावे, पुढील मंत्रात याविषयी कथन केले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (प्रजाजन अपेक्षा व्यक्त करीत आहेत) हे सेनापती, आपण (पान:) शक्ती (कृष्णुष्व) प्राप्त करा (अतिशक्तिमान व्हा) (ज्याप्रमाणे कोळी वा शिकारी जाळे वा पाशामध्ये प्राण्यांना कैद करतात, त्याप्रमाणे) आपण (पृथिवीम्) भूमीला (प्रतितिंम्) (न) पाशात पकडल्याप्रमाणे (याहिं) वश करा. आपण (अस्ता) पाश फेकणारे (वश करणारे) (असि) व्हा. ज्याप्रमाणे एक राजा (इभेन) हस्तीसैन्यामुळे आणि (अममान्) अनेक मंत्री वा दूतांमुळे शक्तिमान होतो, तद्वत आपण (तपिष्ठै:) अत्यंत पीडाकारी शस्त्रांनी (प्रसितिम्) आणि पाशादींनी (मुस्क्या बांधणे, कैदेत टाकणें आदी शिक्षा देऊन (रक्षस:) शत्रूचा (द्रणान:) विनाश करीत (तृष्णीवम्) शीघ्र (वा अकस्मात) शत्रूच्या (अनु) सम्मुख घेऊन त्याला (विध्य) ताडन, मारण करा वा. त्याला बंदिस्त करा. ॥9॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. सेनापतीसाठी हे आवश्यक आहे की त्याने राजाप्रमाणेच बलवान असावे. त्याला पाश आदी बंधनांद्वारे शत्रूला बंदिस्त करना कैद करण्याची रीती अवगत असावी. शत्रूला बाणांनी विद्ध करता यावे आणि त्यास बंदिशाळेत बंदिस्त करून ठेवावे आणि अशा प्रकारे श्रेष्ठजनांचे रक्षण-पालन करावे. ॥9॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O Commander of the army, increase thy vigour, master the earth well-ordered like a net. Thou art the extirpator of foes, attack them like a king equipped with ministers and military paraphernalia. Strengthening thy hold with most deadly weapons, facing and killing the fiends, subdue them soon.
Meaning
Agni, ruler, your influence is fast, far and wide. Increase your strength and power and make it felt. Go like a shot over the earth as a king with his attendant forces. Cast your net of law instantly against the destructive elements and punish them with inescapable consequences.
Translation
О adorable Lord, put forth your vigour, as a hunter spreads his capacious snare, and go like a mighty king on his elephant with his attendants. You are the scatterer of dark forces. May you swiftly follow and transfix the miscreants with your dart, that burns most fiercely. (1)
Notes
Pajah, पाज: इति बलनाम, vigour; strength. Same as ата: | Prasitim, प्रकर्षेण सीयंते बध्यंते पक्षिणो यया सा प्रसिति: ताम्, with which birds are caught, a net or a snare. प्रसिति: प्रसयनात् तंतुर्वा जालं वा (Nir. VI. 12), a thread, or a net. prthvim,विशालां large; capacious. Amavan, अमात्यवान् सहायवान्, accompanied by attendants or ministers. Trsvim prasitim, तृष्व्या प्रसित्या, (case is to be changed), with fast moving snare. Asta, शत्रूणां क्षेप्ता, scatterer of foes. Drünanah, शत्रून् मारयन्, killing the enemies. Tapisthaih, तापकतमै: आयुधै:, with darts that cause extreme burning. Raksasah, राक्षसान् राक्षसस्वभान् दुष्टान्, miscreants; evil enemies. Dayananda has interpreted this and the following two verses as if these are addressed to the commander of the army. It seems appropriate.
बंगाली (1)
विषय
রাজপুরুষৈঃ কথং শত্রবো বন্ধনীয়া ইত্যাহ ॥
রাজপুরুষদিগকে শত্রু কেমন করিয়া বাঁধিতে হইবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে সেনাপতে ! আপনি (পাজঃ) বল (কৃণুষ্ব) করুন (প্রসিতিম্) জালের (ন) সমান (পৃথ্বীম্) ভূমিকে (য়াহি) প্রাপ্ত হউন যদ্দ্বারা আপনি (অস্তা) প্রক্ষিপ্তকারী (অসি) হন্ । ইহারা দ্বারা (ইভেন) হস্তী সহ (অমবান্) বহু দূত যুক্ত (রাজেব) রাজার সমান (তপিষ্ঠৈঃ) অত্যন্ত দুঃখদায়ী শস্ত্র দ্বারা (প্রসিতিম্) জালের বন্ধন সিদ্ধ করিয়া (রক্ষসঃ) শত্রুদিগকে (দ্রুণানঃ) মারিয়া (তৃষ্বীম্) শীঘ্র (অনু) সম্মুখ হইয়া (বিধ্য) তাড়না করুন ॥ ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । সেনাপতির উচিত যে, রাজার সমান পূর্ণ বলযুক্ত হইয়া অনেক জাল দ্বারা শত্রুদিগকে বাঁধিয়া তাহাদিগকে বাণাদি শস্ত্র দ্বারা তাড়না দিবে এবং বন্দীগৃহে বন্ধ করিয়া শ্রেষ্ঠ পুরুষদিগের পালন করিবে ॥ ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
কৃ॒ণু॒ষ্ব পাজঃ॒ প্রসি॑তিং॒ ন পৃ॒থ্বীং য়া॒হি রাজে॒বাম॑বাঁ॒২ऽ ইভে॑ন ।
তৃ॒ষ্বীমনু॒ প্রসি॑তিং দ্রূণা॒নোऽস্তা॑সি॒ বিধ্য॑ র॒ক্ষস॒স্তপি॑ষ্ঠৈঃ ॥ ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
কৃণুষ্বেত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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