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यजुर्वेद अध्याय - 13

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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 48
    ऋषिः - विरूप ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद् ब्राह्मी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    264

    इ॒मं मा हि॑ꣳसी॒रेक॑शफं प॒शुं क॑निक्र॒दं वा॒जिनं॒ वाजि॑नेषु। गौ॒रमा॑र॒ण्यमनु॑ ते दिशामि॒ तेन॑ चिन्वा॒नस्त॒न्वो निषी॑द। गौ॒रं ते॒ शुगृ॑च्छतु॒ यं द्वि॒ष्मस्तं ते॒ शुगृ॑च्छतु॥४८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम्। मा। हि॒ꣳसीः॒। एक॑शफ॒मित्येक॑ऽशफम्। प॒शुम्। क॒नि॒क्र॒दम्। वा॒जिन॑म्। वाजि॑नेषु। गौ॒रम्। आ॒र॒ण्यम्। अनु॑। ते॒। दि॒शा॒मि॒। तेन॑। चि॒न्वा॒नः। त॒न्वः᳖। नि। सी॒द॒। गौ॒रम्। ते॒। शुक्। ऋ॒च्छ॒तु॒। यम्। द्वि॒ष्मः। तम्। ते॒। शुक्। ऋ॒च्छ॒तु॒ ॥४७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमम्मा हिँसीरेकशपम्फशुङ्कनिक्रदँवाजिनँवाजिनेषु । गौरमारण्यमनु ते दिशामि तेन चिन्वानस्तन्वो नि षीद । गौरन्ते शुगृच्छतु यन्द्विष्मस्तन्ते शुगृच्छतु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। मा। हिꣳसीः। एकशफमित्येकऽशफम्। पशुम्। कनिक्रदम्। वाजिनम्। वाजिनेषु। गौरम्। आरण्यम्। अनु। ते। दिशामि। तेन। चिन्वानः। तन्वः। नि। सीद। गौरम्। ते। शुक्। ऋच्छतु। यम्। द्विष्मः। तम्। ते। शुक्। ऋच्छतु॥४७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 48
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरयं मनुष्यः किं कुर्यादित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्य! त्वं वाजिनेष्विममेकशफं कनिक्रदं वाजिनं पशुं मा हिंसीः। ईश्वरोऽहं ते तुभ्यं यमारण्यं गौरं पशुमनु दिशामि, तेन चिन्वानः सँस्तन्वो मध्ये निषीद। ते तव सकाशाद् गौरं शुगृच्छतु यं वयं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥४८॥

    पदार्थः

    (इमम्) (मा) (हिंसीः) हिंस्याः (एकशफम्) एकखुरमश्वादिकम् (पशुम्) द्रष्टव्यम् (कनिक्रदम्) भृशं विफलं प्राप्तव्यथम् (वाजिनम्) वेगवन्तम् (वाजिनेषु) वाजिनानां संग्रामाणामवयवेषु कर्मसु कार्यसिद्धिकरम् (गौरम्) गौरवर्णम् (आरण्यम्) अरण्ये भवम् (अनु) (ते) तुभ्यम् (दिशामि) उपदिशामि (तेन) (चिन्वानः) वर्द्धमानः (तन्वः) शरीरस्य मध्ये (नि) (सीद) (गौरम्) (ते) इत्यादि पूर्ववत्। [अयं मन्त्रः शत॰७.५.२.३३ व्याख्यातः]॥४८॥

    भावार्थः

    मनुष्यैरेकशफा अश्वादयः पशवः कदाचिन्नो हिंस्याः, न चोपकारका आरण्याः। येषां हननेन जगतो हानी रक्षणेनोपकारश्च भवति, ते सदैव पालनीया हिंस्राश्च हन्तव्याः॥४८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर यह मनुष्य क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे राजन्! तू (वाजिनेषु) संग्राम के कामों में (इमम्) इस (एकशफम्) एक खुरयुक्त (कनिक्रदम्) शीघ्र विकल व्यथा को प्राप्त हुए (वाजिनम्) वेगवाले (पशुम्) देखने योग्य घोड़े आदि पशु को (मा) (हिंसीः) मत मार। मैं ईश्वर (ते) तेरे लिये (यम्) जिस (आरण्यम्) जङ्गली (गौरम्) गौरपशु की (दिशामि) शिक्षा करता हूँ, (तेन) उसके रक्षण से (चिन्वानः) वृद्धि को प्राप्त हुआ (तन्वः) शरीर में (निषीद) निरन्तर स्थिर हो, (ते) तेरे से (गौरम्) श्वेत वर्ण वाले पशु के प्रति (शुक्) शोक (ऋच्छतु) प्राप्त होवे और (यम्) जिस शत्रु को हम लोग (द्विष्मः) द्वेष करें, (तम्) उसको (ते) तुझ से (शुक्) शोक (ऋच्छतु) प्राप्त होवे॥४८॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को उचित है कि एक खुर वाले घोड़े आदि पशुओं और उपकारक वन के पशुओं को भी कभी न मारें। जिनके मारने से जगत् की हानि और न मारने से सब का उपकार होता है, उनका सदैव पालन- पोषण करें और जो हानिकारक पशु हों, उन को मारें॥४८॥

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    विषय

    पशुगण की रक्षा, मनुष्य, अश्व आदि एक शक, गौ आदि दुधार पशु, भेड, बकरी, इनकी रक्षा और हिंसकों के नाश का आदेश ।

    भावार्थ

    हे पुरुष ! ( इमं ) इस ( कनिक्रदं ) हर्ष से ध्वनि करने या हिनहिनाने वाले यह सब प्रकार के कष्ट सहने में समर्थ ( एकशफं ) एक खुर के ( वाजिनेषु ) वेगवान्, या संग्रामोपयोगी पशुओं के बीच सब से, अधिक ( वाजिनम् ) वेगवान् अश्व, गधे, खच्चर आदि ( पशुं ) पशु को ( मा हिंसी: ) मत मार (आरण्यम गौरम् ) जंगल के गौर नामक बारहसींगे को लक्ष्य करके (ते अनु दिशामि ) तुझे मैं यह उपदेश करता हूं कि ( तेन चिन्वानः ) उसकी वृद्धि से भी तू अपनी वृद्धि करता हुआ (तन्वं निषीद ) अपने शरीर की रक्षा कर । ( ते शुक्) तेरा शोक, संताप या क्रोध भी ( गौरम् ऋच्छतु) उस गौर नामक, खेती को हानि पहुंचाने वाले मृग को प्राप्त हो । (यं द्विष्मः ) जिसके प्रति हमारी प्रीति नहीं है ( ते शुक्) तेरा शोक, संताप या क्रोध (तम् ऋच्छसु ) उसको ही प्राप्त हो ॥ शत० ७।५।२।३३।।

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    विषय

    घोड़ा व आरण्य गौर

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र की भावना का ही विकास करते हुए कहते हैं कि (इमं एकशफम् पशुम्) = इस एक खुरवाले पशु घोड़े को मा (हिंसी:) = मत नष्ट कर। वह जो कनिम् [अत्यर्थं क्रन्दितारम्] खूब उत्साहपूर्वक हिनहिनानेवाला है तथा (वाजिनेषु वाजिनम्) = [वेगवत्सु वेगवन्तः - उ० ] वेगवालों में वेगवाला है, बड़ी तीव्र गतिवाला है। यह घोड़ा तेरे लिए 'क्षत्र' की वृद्धि करनेवाला है। २. यह घोड़ा तेरे लिए अत्यन्त उपयोगी है। मैं (ते) = तेरे लिए इस (आरण्यम्) = वन में निवास करनेवाले (गौरम्) = मृगविशेष को भी (अनुदिशामि) = [ ददामि - म० ] देता हूँ अथवा उसका उपदेश करता हूँ। (तेन) = उससे (तन्वः) = शरीर की शक्तियों को (चिन्वानः) = बढ़ाता हुआ (निषीद) = तू निषण्ण हो, इस शरीर में स्वस्थ होकर रहनेवाला हो । इसका शृङ्ग तेरे पैत्तिक विकारों को दूर करने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इस मृग से तूने प्रेम ही करना, उसे मारना नहीं। ३. हाँ, (शुक्) = तेरा क्रोध (गौरम्) = हानिकर मृग को (ऋच्छतु) = प्राप्त हो, उसी मृग को (ते शुक् ऋच्छतु) = तेरा क्रोध प्राप्त हो (यम्) = जिसे कृष्यादि विनाशक होने के कारण (द्विष्मः) = हम अवाञ्छनीय समझते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - घोड़ा तेरे लिए अत्यन्त उपयोगी पशु है। आरण्य गौरमृग भी तेरे जीवन में उपयोगी है। यदि वह संख्या में बहुत बढ़कर तुम्हारी कृषि आदि के विनाशक हो जाएँ तभी तू उनपर क्रोध करना ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    एक खूर असणारे घोडे इत्यादी पशू व वनातील उपकारक पशू यांना कधीही माणसांनी मारू नये. त्यांना मारण्याने जगाचे नुकसान होते व न मारल्यास जगावर उपकार होतो. त्यासाठी त्यांचे नेहमी पालनपोषण करावे व जे हानिकारक पशू आहेत त्यांना मारावे.

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    विषय

    माणसांने काय करावे ( त्याचे कर्तव्य काय?) या विषयी पुढील मंत्रात कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (ईश्‍वरराचा उपदेश तसेच विद्वज्जनांचा उपदेश राजाप्रत) हे राजन्‌, तू (वजिनेषु) युद्धकार्यामध्ये उपदेशी (इमम्‌) या (एकशफम्‌) एक खुर असलेल्या (खुरयुक्त चतुष्याद प्राण्याला) तसेच (कनिक्रदम) पीडेने अत्यंत व्याकुळ असलेल्या (वाजिनम्‌) वेगवान आणि (पशुम्‌) प्रेक्षणीय (उत्तम जातीचा) अशा घोडा आदी पशूंना (मा) (हिंसी:) मारू नकोस (युद्धात उपयोगी, शक्तिशाली, वेगवान उत्तम घोडा आदी पशूंचे रक्षणासोबत घायाळ प्राण्यांचेही परिपालन व रक्षण कर) मी परमेश्‍वर, (ते) तुझ्यासाठी (यम्‌) ज्या (आरण्यम्‌) वन्य (गौरम्‌) गौरवर्णाच्या (श्वेत , पीत वा उज्वल रंगाच्या) पशूंच्या रक्षण-पालनविषयी (दिशामि) आदेश देत आहे (तेन) त्यांच्या रक्षणाद्वारे (चिन्वान:) उन्नती करीत तू (तन्व्‌:) शरीर उत्तम व स्वस्थ ठेऊन (निषीद) स्थिर रहा (निश्‍चिंत रहा) (ते) तुझ्याकडून (गौरम्‌) श्‍वेत वर्गाच्या (आणि उपद्रवी व हिंसक) पशूला (शुक) शोक (ऋतु) मिळो (हिंसक प्राण्यांचा नाश होवो) तसेच (यम्‌) ज्या शत्रूचा आम्ही (विद्वज्जन) (द्विष्म:) द्वेष करतो (वा करू) (तम्‌) त्याला देखील (ते) तुझ्याकडून (शुक्‌) शोक (वा नाश) (ऋच्छतु) प्राप्त होवो ॥48॥

    भावार्थ

    भावार्थ - मनुष्यांनी एक खुर असलेल्या घोडा आदी पशूंची तसेच वयातील उपकारक पशूंची हिंसा कदापि करूं नये, कारण त्याच्या हिंसेमुळे जगाची हानी होते आणि त्याच्या पालन रक्षणामुळे सर्वांवर उपकार होतो. यामुळे उपयोगी पशूंचे पालन-पोषण सदैव करावे आणि जे हानिकर पशू असतील (नरभक्षी, ग्राम्यपशु भक्षी वाघ, पिसाळेली हत्ती, लांडगा आदी) असतील, त्यांना ठार मारावे ॥48॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, dont destroy -this one-hoofed beautiful horse, soon agitated and writhing with pain in battlefields. I point out to thee the forest rhinoceros. With his protection add to thy prosperity and physical strength. Let the wild and uncontrolled rhinoceros be put to grief by thee. Let thy enemy, whom we detest, be put to grief.

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    Meaning

    Do not kill this one-hoofed animal, fastest among the fast, roaring in the battles. I advise you, turn your attention to the white, yellow and brown animals, the wild ones, and growing by this animal wealth, sit at peace with yourself. Let your concern address the wild animals. Let it be directed to those who hurt us.

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    Translation

    May you not injure this animal with solid hooves, the neighing speedy horse among the speedy ones. I offer to you the wild gaura (the precursor of horse); consuming him and flourishing thereon may you be seated here. May your burning heat go to the paura; may your burning heat go to him whom we hate. (1)

    Notes

    Ekasapham, an animal with one hoof or solid hoof. एक शफोवा एष पशुर्यदश्व:, the horse is verily the solid-hoofed animal. (Satapatha, VII. 5. 2. 33). Vajinam vajinesyu, वेगवत्सु वेगवंतम्, speedy among the speedy ones. Gauram aranyam, wild gaura (Bos Gaurus), а species of wild ox.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরয়ং মনুষ্যঃ কিং কুর্য়াদিত্যাহ ॥
    পুনঃ এই মনুষ্য কী করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে রাজন্ ! তুমি (বাজিনেষু) সংগ্রামের কার্য্যে (ইমম্) এই (একশফম্) একক্ষুরযুক্ত (কনিক্রদম্) শীঘ্র বিকল ব্যথা প্রাপ্ত (বাজিনম্) বেগযুক্ত (পশুম্) দ্রষ্টব্য অশ্বাদি পশুকে (মা) (হিংসীঃ) মারিও না । আমি ঈশ্বর (তে) তোমার জন্য (য়ম্) যে (আরণ্যম্) বন্য (গৌরম্) গৌরপশুর (দিশামি) শিক্ষা প্রদান করিতেছি, (তেন) তাহার রক্ষণ দ্বারা (চিন্বানঃ) বর্দ্ধমান (তন্বঃ) শরীরে (নিষীদ) নিরন্তর স্থির হও, (তে) তোমার দ্বারা (গৌরম্) শ্বেতবর্ণযুক্ত পশুর প্রতি (শুক) শোক (ঋচ্ছতু) প্রাপ্ত হউক এবং (য়ম্) যে শত্রুকে আমরা (দ্বিষ্মঃ) দ্বেষ করি (তম্) উহাকে (তে) তোমার দ্বারা (শুক্) শোক (ঋচ্ছতু) প্রাপ্ত হউক ॥ ৪৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত এক ক্ষুরযুক্ত অশ্বাদি পশু এবং উপকারক বনের পশুকে কখনও কেহ মারিবে না । যাহাদের মারিলে জগতের ক্ষতি এবং না মারিলে সকলের উপকার হয় তাহাদের সর্বদা পালন পোষণ করিবে এবং যাহারা ক্ষতিকর পশু তাহাদের মারিবে ॥ ৪৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ই॒মং মা হি॑ꣳসী॒রেক॑শফং প॒শুং ক॑নিক্র॒দং বা॒জিনং॒ বাজি॑নেষু ।
    গৌ॒রমা॑র॒ণ্যমনু॑ তে দিশামি॒ তেন॑ চিন্বা॒নস্ত॒ন্বো᳕ নি ষী॑দ ।
    গৌ॒রং তে॒ শুগৃ॑চ্ছতু॒ য়ং দ্বি॒ষ্মস্তং তে॒ শুগৃ॑চ্ছতু ॥ ৪৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ইমং মেত্যস্য বিরূপ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদ্ব্রাহ্মী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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