यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 26
ऋषिः - सविता ऋषिः
देवता - क्षत्रपतिर्देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
185
अषा॑ढासि॒ सह॑माना॒ सह॒स्वारा॑तीः॒ सह॑स्व पृतनाय॒तः। स॒हस्र॑वीर्य्यासि॒ सा मा॑ जिन्व॥२६॥
स्वर सहित पद पाठअषा॑ढा। अ॒सि॒। सह॑माना। सह॑स्व। अरा॑तीः। सह॑स्व। पृ॒त॒ना॒य॒त इति॑ पृतनाऽय॒तः। स॒हस्र॑वी॒र्य्येति॑ स॒हस्र॑ऽवीर्य्या। अ॒सि॒। सा। मा॒। जि॒न्व॒ ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अषाढासि सहमाना सहस्वारातीः सहस्व पृतनायतः । सहस्रवीर्यासि सा मा जिन्व ॥
स्वर रहित पद पाठ
अषाढा। असि। सहमाना। सहस्व। अरातीः। सहस्व। पृतनायत इति पृतनाऽयतः। सहस्रवीर्य्येति सहस्रऽवीर्य्या। असि। सा। मा। जिन्व॥२६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सा कीदृशी भवेदित्याह॥
अन्वयः
हे पत्नि! या त्वमषाढासि सा त्वं सहमाना सती पतिं मां सहस्व। या त्वं सहस्रवीर्याऽसि सा त्वं पृतनायतोऽरातीः सहस्व, यथाहं त्वां प्रीणामि पतिं तथा मा च जिन्व॥२६॥
पदार्थः
(अषाढा) शत्रुभिरसह्यमाना (असि) (सहमाना) पत्यादीन् सोढुमर्हा (सहस्व) (अरातीः) शत्रून् (सहस्व) (पृतनायतः) आत्मनः पृतनां सेनामिच्छतः (सहस्रवीर्य्या) असंख्यातपराक्रमा (असि) (सा) (मा) माम् (जिन्व) प्रीणीहि। [अयं मन्त्रः शत॰७.४.२.३९ व्याख्यातः]॥२६॥
भावार्थः
या कृतदीर्घब्रह्मचर्य्यबलिष्ठा जितेन्द्रिया वसन्ताद्यृतुकृत्यविलक्षणा पत्यपराधक्षमाकारिणी शत्रुनिवारिकोत्तमपराक्रमा स्त्री नित्यं स्वस्वामिनं प्रीणाति, तां पतिरपि नित्यमानन्दयेत्॥२६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह कैसी हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे पत्नी! जो तू (अषाढा) शत्रु के असहने योग्य (असि) है, तू (सहमाना) पति आदि का सहन करती हुई अपने पति के उपदेश को (सहस्व) सहन कर, जो तू (सहस्रवीर्य्या) असंख्यात प्रकार के पराक्रमों से युक्त (असि) है, (सा) सो तू (पृतनायतः) अपने आप सेना से युद्ध की इच्छा करते हुए (अरातीः) शत्रुओं को (सहस्व) सहन कर और जैसे मैं तुझ को प्रसन्न रखता हूं, वैसे (मा) मुझ पति को (जिन्व) तृप्त किया कर॥२६॥
भावार्थ
जो बहुत काल तक ब्रह्मचर्य्याश्रम से सेवन की हुई, अत्यन्त बलवान् जितेन्द्रिय वसन्त आदि ऋतुओं के पृथक्-पृथक् काम जानने, पति के अपराध को क्षमा और शत्रुओं का निवारण करने वाली, उत्तम पराक्रम से युक्त स्त्री अपने स्वामी पति को तृप्त करती है, उसी को पति भी नित्य आनन्दित करे॥२६॥
विषय
अषाढा, सेना का वर्णन पक्षान्तर में पत्नी का कर्तव्य ।
भावार्थ
हे सेने ! तू ( अषाढा असि ) शत्रु से कभी पराजित न होने वाली होने से 'अषाढ़ ।', असह्य पराक्रम वाली है। तू ( सहमाना ) विजय करती हुई (अरातीः) कर न देने वाली शत्रुओं को ( सहस्व ) विजय कर । और ( पृतनायतः ) अपनी सेना बनाकर हम से युद्ध करना चाहने वालों को भी ( सहस्व ) पराजित कर तू ( सहस्रवर्यासि ) सहस्रों वीर पुरुषों के बलों से युक्त है । ( सा ) वह तू ( मा ) मुझ राष्ट्रपति और क्षत्र-पति को ( जिन्व ) हृष्ट पुष्ट कर ॥ शत० ७ । ४ । २ । ३३ । ७० ॥ गृहस्थ में - स्त्री भी शत्रु द्वारा असह्य हो, वह सब विरोधियों को दबा कर पति को प्रसन्न करे । अध्यात्म में अषाढा=वाक् ।
टिप्पणी
अतः परं । १२ / १९ । मन्त्रः पठयते काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
देवाः सविता वा ऋषिः । क्षत्रपतिरषाढा देवता । निचृदनुष्टुप् ॥ गांधारः ॥
विषय
NULL
पदार्थ
१. हे पत्नि ! (अषाढा असि) = तू न कुचली जानेवाली है, शत्रु तेरा धर्षण नहीं कर सकते। २. (सहमाना) = तू शत्रुओं का पराभव करनेवाली है, अतः (अरातीः) = शत्रुओं को अथवा अदान की भावनाओं को तू (सहस्व) = नष्ट कर डाल। तुझ में देने की वृत्ति हो, यह देने की वृत्ति ही व्यसन - वृक्ष के तनेरूप लोभ को समाप्त करके मनुष्यों को सब वासनाओं से ऊपर उठाती है। एवं दान देना सचमुच दान- [दाप् लवने] बुराइयों का काटनेवाला हो जाता है और इस प्रकार यह दान = [ दैप् शोधने] जीवन का शोधक होता है। ३. (पृतनायतः) = शत्रु-सैन्य की भाँति आक्रमण करनेवाले काम-क्रोध-लोभ आदि को तू (सहस्व) = पराजित कर । ४. तू सचमुच इनका पराजय करनेवाली (सहस्त्रवीर्या) = अनन्त शक्तिवाली अथवा हास्ययुक्त-प्रसन्नतापूर्ण शक्तिवाली है, [ स + हस्] । ५. (सा) = वह तू (मा) = मुझे (जिन्व) = प्रीणित करनेवाली हो। वस्तुतः उल्लिखित गुणों से युक्त पत्नी से ही पति प्रसन्नता का अनुभव कर पाता है। ऐसी ही पत्नी उत्तम सन्तानों को जन्म देने के कारण प्रस्तुत मन्त्र की ऋषिका 'सविता' बनती है [सावित्री - सविता लिंगव्यत्ययः अथवा स्वसृ आदि में पाठ मानकर ङीप् नहीं हुआ ] ।
भावार्थ
भावार्थ- पत्नी कामादि शत्रुओं का पराभव करनेवाली हो, तभी वह शक्तिसम्पन्न होगी और उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाली बनेगी।
मराठी (2)
भावार्थ
जी पुष्कळ वर्षे ब्रह्मचारिणी राहिलेली, अत्यंत बलवान, जितेंद्रिय, वसंत वगैरे ऋतूतील वेगवेगळी कामे जाणणारी, पतीच्या अपराधांना क्षमा करणारी आणि शत्रूंचे निवारण करणारी, उत्तम पराक्रमाने युक्त स्त्री आपल्या पतीला तृप्त करणारी असते अशा स्त्रीलाच पतीही सदैव आनंदित करतो.
विषय
पुढील मंत्रात, पत्नी कशी असावी, याविषयी कथन केले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (पती पत्नीस म्हणतो) हे पत्नी, तू (अषाढा) (असि) इतकी पराक्रमी आहेस की शत्रू तुला भितात) अथवा शत्रू तुझे काही वाईट करू शकत नाहीस. पण तू पती आदी (दीर, ससुर, श्वश्रू) यांना (त्यांचे हितकारी उपदेश ऐकून योग्य तो आदर-मान देणारी आहेका,) म्हणून (सहस्वे) सहन कर (त्यांचा उपदेश व म्हणणे ऐक.) तू (सहस्रवीर्या) अनेक प्रकारच्या वीर कार्यात निपुण व पराक्रमी (असि आहेस. (सा) अशी तू (पृतनायर्त:) जे (अराती:) जे शत्रू आवषा होऊन तुझ्याशी युद्ध करण्यासाठी येतात (वा तुझ्या ग्राम, नगरादीवर हल्ला करतात) त्यांचा (सहस्व) समर्थपणे सामना कर. ज्याप्रमाणे मी तुला प्रसन्न ठेवतो, याप्रमाणे तू देखील (मा) मला (मी तुझा पती-मला) (जिन्व) आनंदी ठेव आणि संतृप्त कर ॥26॥
भावार्थ
भावार्थ - दीर्घकाळापर्यंत ब्रह्मचर्य श्रमाचे पालन केलेली, अत्यंत बलवती, जितेंद्रिय, वसंत आदी ऋतूंमधील आवश्यक त्या कामांची जाणकार असलेली, पतीच्या चुका क्षमा करणारी, आणि शत्रूंचा (दुष्टांचा) पराभव वा निवारण करणारी, श्रेष्ठ पराक्रमी अशी जी पत्नी आपल्या पतीला (सेवादीकार्यांद्वारे) संतुष्ट व सुखी करते, त्या स्त्रीला तिचा पती देखील सदा संतुष्ट व प्रसन्न ठेवतो ॥26॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O wife, thou art unconquerable by foes. Being patient, tolerate me thy husband. Possessing a thousand manly powers, anxious to oppose an army, overpower the foes. Just as I keep thee satisfied so shouldst thou keep me pleased.
Meaning
Ruling power, Shakti, you are tolerant, challenging and invincible. Challenge the mean, the ungenerous and the destructive forces. Face, fight and defeat those who are bent upon violence. You have the strength and prowess of a thousand powers. Be good to me, be good and gracious to all.
Translation
Unvanquished you are, O lady, always overwhelming by nature. Overwhelm our enemies, who refuse to pay our dues. Overwhelm those who invade us. You are of immense power. May you favour us. (1)
Notes
Asadha, शत्रून् न सहते इति अषाढा, one that does not tolerate enemies. अभिभवनशीला, whom enemies cannot tolerate or face. Sahamana, अभिभव, conquering by nature. Sahasva, afi, defeat; conquer; vanquish. Jinva, प्रीणीहि, be pleased with us; favour us.
बंगाली (1)
विषय
পুনঃ সা কীদৃশী ভবেদিত্যাহ ॥
পুনঃ সে কেমন হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে পত্নী ! তুমি (অষাড়া) শত্রুর পক্ষে অসহনীয় (অসি) হও, তুমি (সহমানা) পতি ইত্যাদি কে সহ্য করিয়া নিজের উপদেশের (সহস্ব) সহ্য কর । তুমি যে (সহস্রবীর্য়্যা) অসংখ্য প্রকারের পরাক্রম যুক্ত (অসি) হও (সা) সেই তুমি (পৃতনায়তঃ) স্বয়ং সেনার সহিত যুদ্ধের ইচ্ছা প্রকাশ করিয়া (অরাতীঃ) শত্রুদিগকে (সহস্ব) সহ্য কর এবং যেমন আমি তোমাকে প্রসন্ন রাখি, সেইরূপ (মা) আমাকে অর্থাৎ পতিকে (জিন্ব) তৃপ্ত করিতে থাক ॥ ২৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে বহুকাল পর্য্যন্ত ব্রহ্মচর্য্যাশ্রম দ্বারা সেবিত অত্যন্ত বলবান্ জিতেন্দ্রিয় বসন্তাদি ঋতুগুলির পৃথক পৃথক কর্ম জানে, পতির অপরাধ ক্ষমা এবং শত্রুদিগের নিবারণকারী উত্তম পরাক্রম যুক্ত স্ত্রী নিজ স্বামী (পতি) কে তৃপ্ত করে, তাহার পতিও নিত্য আনন্দিত করিতে থাকেই ॥ ২৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অষা॑ঢাসি॒ সহ॑মানা॒ সহ॒স্বারা॑তীঃ॒ সহ॑স্ব পৃতনায়॒তঃ ।
স॒হস্র॑বীর্য়্যাসি॒ সা মা॑ জিন্ব ॥ ২৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অষাঢাসীত্যস্য সবিতা ঋষিঃ । ক্ষত্রপতির্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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