यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 39
ऋ॒चे त्वा॑ रु॒चे त्वा॑ भा॒से त्वा॒ ज्योति॑षे त्वा। अभू॑दि॒दं विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य॒ वाजि॑नम॒ग्नेर्वै॑श्वान॒रस्य॑ च॥३९॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒चे। त्वा॒। रु॒चे। त्वा॒। भा॒से। त्वा॒। ज्योति॑षे। त्वा॒। अभू॑त्। इ॒दम्। विश्व॑स्य। भुव॑नस्य। वाजि॑नम्। अ॒ग्नेः। वै॒श्वा॒न॒रस्य॑। च॒ ॥३९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋचे त्वा रुचे त्वा भासे त्वा ज्योतिषे त्वा । अभूदिदँविश्वस्य भुवनस्य वाजिनमग्नेर्वैश्वानरस्य च ॥
स्वर रहित पद पाठ
ऋचे। त्वा। रुचे। त्वा। भासे। त्वा। ज्योतिषे। त्वा। अभूत्। इदम्। विश्वस्य। भुवनस्य। वाजिनम्। अग्नेः। वैश्वानरस्य। च॥३९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
विद्वद्भ्य इतरैरपि विज्ञानं प्राप्यमित्याह॥
अन्वयः
हे विद्वन्! यस्य तव विश्वस्य भुवनस्य वैश्वानरस्याग्नेश्च वाजिनमिदं विज्ञानमभूत् जातम्, तमृचे त्वा रुचे त्वा भासे त्वा ज्योतिषे त्वा वयमाश्रयेम॥३९॥
पदार्थः
(ऋचे) स्तुतये (त्वा) त्वाम् (रुचे) प्रीतये (त्वा) (भासे) विज्ञानाय (त्वा) (ज्योतिषे) न्यायप्रकाशाय (त्वा) (अभूत्) भवेत् (इदम्) (विश्वस्य) समग्रस्य (भुवनस्य) सर्वाधिकारस्य जगतः (वाजिनम्) वाजिनां विज्ञानवतामिदमवयवभूतं विज्ञानम् (अग्नेः) विद्युदाख्यस्य (वैश्वानरस्य) अखिलेषु नरेषु राजमानस्य (च)। [अयं मन्त्रः शत॰७.५.२.१२ व्याख्यातः]॥३९॥
भावार्थः
यस्य मनुष्यस्य सर्वेषां जगत्पदार्थानां यथार्थो बोधः स्यात्, तमेव सेवित्वा पदार्थविज्ञानं सर्वैर्मनुष्यैः प्राप्तव्यम्॥३९॥
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों से अन्य मनुष्यों को भी ज्ञान लेना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे विद्वान् पुरुष! जिस तुझ को (विश्वस्य) समस्त (भुवनस्य) संसार के सब पदार्थों (च) और (वैश्वानरस्य) सम्पूर्ण मनुष्यों में शोभायमान (अग्नेः) बिजुलीरूप (वाजिनम्) ज्ञानी लोगों का अवयवरूप (इदम्) यह विज्ञान (अभूत्) प्रसिद्ध हुआ है, उस (ऋचे) स्तुति के लिये (त्वा) तुझ को (रुचे) प्रीति के वास्ते (त्वा) तुझ को (भासे) विज्ञान की प्राप्ति के अर्थ (त्वा) तुझको और (ज्योतिषे) न्याय के प्रकाश के लिये भी (त्वा) तुझ को हम लोग आश्रय करते हैं॥३९॥
भावार्थ
जिस मनुष्य को जगत् के पदार्थों का यथार्थ बोध होवे, उसी के सेवन से सब मनुष्य पदार्थविद्या को प्राप्त होवें॥३९॥
विषय
उत्तम विद्वान् पुरुष की उत्तम उद्देश्यों के लिये नियुक्ति ।
भावार्थ
हे पुरुष ! (त्वा) तुझ के ( ऋचे ) यथार्थ ज्ञान के लिये, ( त्वा रुचे ) तुझ को कान्ति, यथोचित प्रीति का और अभिलाषा पूर्ति के लिये, ( भासे त्वा ) दीप्ति के लिये, ( ज्योतिषे त्वा) तेज को प्राप्त करने के लिये प्राप्त करता हूं । ( इदं ) यह ( विश्वस्य भुवनस्य ) समस्त विश्व का ( वाजिनम् ) प्रेरक बल है और यही (अग्ने: ) ज्ञानवान् और (वैश्वानरस्य) समस्त नरो या नेताओं में व्यापक रूप से विद्यमान प्रजापति के भी ( वाजिनम् ) वीर्य या उनके समस्त वाणी का ज्ञान करने वाला है | शत० ७ । ५ । २ । १२ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निर्देवता निचृद् बृहती | मध्यमः ॥
विषय
वाजी गति देनेवाला
पदार्थ
१. गत मन्त्र के अनुसार हृदय में उस 'हिरण्यगर्भ' प्रभु का दर्शन करनेवाला 'विरूप' कहता है कि (ऋवे त्वा) = मैं स्तुति [ऋच् स्तुतौ] के लिए तुझे प्राप्त होता हूँ। आपका दर्शन मुझे स्तुतिमय जीवनवाला कर देता है मुझे किसी की निन्दा करना व सुनना रुचिकर ही नहीं रहता। २. (रुचे त्वा) = उत्तम रुचि के लिए आपको प्राप्त होता हूँ। मेरी इच्छाएँ व मानस झुकाव उत्तम हों, इसके लिए मैं आपके समीप आता हूँ। ३. (भासे त्वा) = पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति की आँख में प्रकट होनेवाली चमक [दीप्ति] के लिए मैं आपको प्राप्त होता हूँ। आपका दर्शन मुझे पूर्ण स्वस्थ करता है और स्वास्थ्य की झलक मेरी आँख की दीप्ति में दिखती है। ४. (ज्योतिषे त्वा) = आपकी वाणी को सुनते हुए मैं ज्ञान की ज्योति प्राप्त करने के लिए आपको प्राप्त करता हूँ। आपकी उपासना मेरे श्रोत्रों को आपकी वाणी को सुनने के योग्य बनाती है और इस प्रकार मेरा ज्ञान निरन्तर बढ़ता है। ५. इस ज्ञान के बढ़ने से मैं देख पाता हूँ कि (इदम्) = यह ब्रह्म ही (विश्वस्य भुवनस्य) = सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का (वाजिनं अभूत्) = प्रेरक बल है, गति देनेवाली शक्ति है [वाज बल, वाजिनम् = बलवाला] सारा ब्रह्माण्ड इसी से गति दिया जा रहा है ('भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया') = सब भूतों को प्रभु ही गति दे रहे हैं । ५. (च) = ब्रह्माण्ड को तो वे गति दे ही रहे हैं, इस प्राणियों के देह में स्थित (वैश्वानरस्य अग्नेः) = सब नरों की हितकारी जाठराग्नि को भी वे प्रभु ही गति दे रहे हैं। सब ब्रह्माण्डों व पिण्डों का सञ्चालन प्रभु ही कर रहे हैं।
भावार्थ
भावार्थ-उस प्रभु की प्राप्ति से हमारी वाणी स्तुति ही करती है, निन्दा नहीं। हमारे मनों की रुचियाँ उत्तम ही होती हैं, हीन नहीं। हमारी आँख स्वास्थ्य की दीप्ति से चमकती हैं और श्रोत्र ज्ञान - श्रवण से चमकते हैं । अन्ततः इस साक्षात् प्रभु को ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करते हुए देखते हैं और अपने शरीरों में वैश्वानररूप से अन्न - पाचन भी उसी से होता देखते हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
ज्या माणसाला जगातील पदार्थांचा यथार्थ बोध होतो. त्यांच्या मतानुसारच सर्व माणसांनी पदार्थ विद्या प्राप्त करावी.
विषय
(विद्वज्जनांहून वेगळ्या (म्हणजे सामान्य ज्ञान असलेल्या) मनुष्यांनी विद्वानांकडून ज्ञान ग्रहण केले पाहिजे, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्वान महोदय, तुम्ही (विश्वस्थ) संपूर्ण (भुवनस्म) जगातील सर्व पदार्थांचे आणि (वैश्वानरस्य) सर्व मनुष्यांना प्रकाश आणि लाभ देणाऱ्या (अग्ने:) विद्युतरुप अग्नीच्या (वाजिनम्) शक्तिदायी अशा (इदम्) या विज्ञानाला (अभूत्) जाणता (आपण सर्व पदार्थांच्या उपयोगाचे उचित ज्ञान मिळविले आहे) हे ज्ञान (ऋचे) प्राप्त करण्यासाठी वा त्याचे गुण जाणण्यासाठी आम्ही (त्वा) तुमच्या आश्रयास येतो. (सचे) त्या ज्ञाना विषयी असलेल्या प्रेमापोटी (त्वा) तुमच्या आणि (भासे) त्या ज्ञानाच्या प्राप्तीसाठी आम्ही (त्वा) तुमच्या आश्रयास येतो. तसेच (ज्योतिषे) न्याय्य व सत्य जागण्यासाठी आम्ही (त्वा) तुमचा आश्रय घेतो (तुमच्याजवळ येतो. तुम्ही आम्हा सामान्यज्ञानी असलेल्या लोकांना सर्व पदार्थांचे विशेष ज्ञान शिकवा) ॥39॥
भावार्थ
भावार्थ - ज्या मनुष्यांना (शास्त्रज्ञ, वैज्ञानिक, वैद्य आदी लोकांना (शोध, प्रयोग आदी द्वारा) जगातील पदार्थांचा बोध, विशेषज्ञान प्राप्त झालेले असेल, ती पदार्थ विद्या (भौतिकशास्त्र) विद्वानांनी सर्व मनुष्यांना सांगावी ॥39॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, thou hast acquired the knowledge of all objects of the universe, and the wisdom of lightning-like brilliant persons being lovely of all human beings. We resort to thee for praise, for love for the acquisition of spiritual knowledge, and for the light of justice.
Meaning
To you Agni, lord of knowledge and speech, thanks and salutations for the knowledge of truth, love and lustre of life, light of science, and brilliance of justice and rectitude! By virtue of you alone, this soul has become aware of the entire world and of the universal presence of agni, the vital energy of life and nature active in the earthly sphere. By virtue of Agni alone this scholar and teacher can propagate this knowledge of reality among the people around.
Translation
O fire divine, I invoke you for the sake of sacred speech. (1) I invoke you for the sake of brilliance. (2) I invoke you for the sake of glamour. (3) I invoke you for the sake of light. (4) This has become the urging strength of all the world as well as of the adorable Lord, benevolent to alL men. (5)
Notes
Rk, sacred speech; praise-verses. Ruc, lustre, brilliance. Bhah, glamour. Jyotih, light. Uvata and Mahidhara have tried to add Srotram to this mantra with a far-fetched and unconvincing logic. इदं श्रोत्रं विश्वस्य सर्वस्य भुवनस्य भूतजातस्य वैश्वानरस्य विश्वेभ्य: सर्वेभ्य: नरेभ्यो हितस्याग्नेश्च वाजिनं वाचो ज्ञातृ अभूत् सर्वप्राशब्दा वह्नेश्च शब्दोऽश्रोथेणैव ज्ञायते , і. е. the ear is the conveyer of ail the sounds including those made by the fire. The glaring fact 1s that there is no mention of srotra at all in the mantra.
बंगाली (1)
विषय
বিদ্বদ্ভ্য ইতরৈরপি বিজ্ঞানং প্রাপ্যমিত্যাহ ॥
বিদ্বান্দিগের হইতে অন্য মনুষ্যদিগের জ্ঞান লওয়া উচিত, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্বান্ পুরুষ ! তোমাতে (বিশ্বস্য) সমস্ত (ভুবনস্য) সংসারের সকল পদার্থ (চ) এবং (বৈশ্বানরস্য) সম্পূর্ণ মনুষ্য সমূহের মধ্যে শোভায়মান (অগ্নেঃ) বিদ্যুৎরূপ (বাজিনম্) জ্ঞানীলোকদিগের অবয়বরূপ (ইদম্) এই বিজ্ঞান (অভূৎ) প্রসিদ্ধ হইয়াছে সেই (ঋচে) স্তুতি হেতু (ত্বা) তোমাকে (রুচে) প্রীতির জন্য, (ত্বা) তোমাকে, (ভাসে) বিজ্ঞানের প্রাপ্তির জন্য (ত্বা) তোমাকে এবং (জ্যোতিষে) ন্যায়ের প্রকাশ হেতুও (ত্বা) তোমাকে আমরা আশ্রয় করি ॥ ৩ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে মনুষ্যকে জগতের পদার্থের যথার্থ বোধ হইবে তাহারই সেবন দ্বারা সকল মনুষ্য পদার্থবিদ্যা লাভ করিবে ॥ ৩ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ঋ॒চে ত্বা॑ রু॒চে ত্বা॑ ভা॒সে ত্বা॒ জ্যোতি॑ষে ত্বা ।
অভূ॑দি॒দং বিশ্ব॑স্য॒ ভুব॑নস্য॒ বাজি॑নম॒গ্নের্বৈ॑শ্বান॒রস্য॑ চ ॥ ৩ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ঋচে ত্বেত্যস্য বিরূপ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদ্বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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