यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 33
ऋषिः - गोतम ऋषिः
देवता - विष्णुर्देवता
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
117
विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे। इन्द्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑॥३३॥
स्वर सहित पद पाठविष्णोः॑। कर्मा॑णि। प॒श्य॒त॒। यतः॑। व्र॒तानि॑। प॒स्प॒शे। इन्द्र॑स्य। युज्यः॑। सखा॑ ॥३३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे । इन्द्रस्य युज्यः सखा ॥
स्वर रहित पद पाठ
विष्णोः। कर्माणि। पश्यत। यतः। व्रतानि। पस्पशे। इन्द्रस्य। युज्यः। सखा॥३३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
विद्वद्वदितरैर्जनैराचरणीयमित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! य इन्द्रस्य जीवस्य युज्यः सखास्ति, यतोऽयं विष्णोः कर्माणि व्रतानि च पस्पशे, तस्मादेतस्यैतानि यूयमपि पश्यत॥३३॥
पदार्थः
(विष्णोः) व्यापकेश्वरस्य (कर्माणि) जगत्सृष्टिपालनप्रलयकरणन्यायादीनि (पश्यत) संप्रेक्षध्वम् (यतः) (व्रतानि) नियतानि सत्यभाषणादीनि (पस्पशे) स्पृशति (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यमिच्छुकस्य जीवस्य (युज्यः) उपयुक्तानन्दप्रदः (सखा) मित्र इव वर्त्तमानः। [अयं मन्त्रः शत॰७.५.१.२५ व्याख्यातः]॥३३॥
भावार्थः
यथा परमेश्वरस्य सुहृदुपासको धार्मिको विद्वानस्य गुणकर्मस्वभावक्रमानुसाराणि सृष्टिक्रमाणि कुर्याज्जानीयात्, तथैवेतरे मनुष्याः कुर्युर्जानीयुश्च॥३३॥
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों के तुल्य अन्य मनुष्यों को आचरण करना चाहिये, इसी विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जो (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्य की इच्छा करनेहारे जीव का (युज्यः) उपासना करने योग्य (सखा) मित्र के समान वर्त्तमान है, (यतः) जिसके प्रताप से यह जीव (विष्णोः) व्यापक ईश्वर के (कर्माणि) जगत् की रचना, पालन, प्रलय करने और न्याय आदि कर्मों और (व्रतानि) सत्यभाषणादि नियमों को (पस्पशे) स्पर्श करता है, इसलिये इस परमात्मा के इन कर्मों और व्रतों को तुम लोग भी (पश्यत) देखो, धारण करो॥३३॥
भावार्थ
जैसे परमेश्वर का मित्र, उपासक, धर्मात्मा, विद्वान् पुरुष परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभावों के अनुसार सृष्टि के क्रमों के अनुकूल आचरण करे और जाने, वैसे ही अन्य मनुष्य करें और जानें॥३३॥
विषय
समद्धि की वृद्धि, व्यापक शक्तिमान् राजा का वर्णन ।
भावार्थ
व्याख्या देखो अ० ६ । ४ ॥ शत० ७।५।११० ॥
विषय
विष्णु बनना
पदार्थ
१. गत मन्त्र में यज्ञों पर बल दिया है। प्रस्तुत मन्त्र में सारे ब्रह्माण्ड का धारण करनेवाले प्रभु की ओर ध्यान दिलाते हैं और कहते हैं कि (विष्णोः) = [विष्णुर्वाव यज्ञः] उस यज्ञरूप प्रभु के कर्माणि धारण के लिए किये जाते हुए कर्मों को (पश्यत) = देखो। २. (यतः) = प्रभु के कर्मों को देखने से मनुष्य (व्रतानि) = अपने कर्मों को भी (पस्पशे) = देखता है। उदाहरणार्थ- प्रभु दयालु हैं - यह भी दयालु बनने का ध्यान करता है। प्रभु न्यायकारी हैं - यह भी न्याय को अपनाता है। ३. इस प्रकार यह प्रभु के कर्मों से अपने कर्मों का निश्चय करनेवाला - प्रभु को ही अपना पुरोहित [model] बनानेवाला 'गोतम' उस (इन्द्रस्य) = परमैश्वर्यशाली - सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु का (युज्यः सखा) = सदा साथ रहनेवाला मित्र बनता है अथवा प्रभु को आदर्श मानकर कर्म करनेवाले (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष का वह विष्णु (युज्यः सखा) = सदा साथ रहनेवाला-अटूट मित्र बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के कर्मों को देखकर हम अपने कर्त्तव्यों का निर्धारण करें। ऐसा करने पर वे प्रभु सदा हमारे पूर्ण मित्र होते हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
ज्यप्रमाणे परमेश्वराला मित्र मानणारा, धर्मात्मा उपासक विद्वान पुरुष परमेश्वराचा गुण, कर्म, स्वभाव व सृष्टिक्रम जाणून त्याप्रमाणे आचरण करतो तसे इतर माणसांनीही वागावे.
विषय
सर्वांना विद्वानांप्रमाणे (ते करीत असल्याप्रमाणे) आचरण करावे, पुढील मंत्रात हा विषय वर्णिला आहे-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (तुम्ही पहा की हा जो) (इन्द्रस्य) ऐश्वर्याचा इच्छुक विद्वान मनुष्य (युज्य:) उपासनीय परमेश्वराचा (सखा) मित्राप्रमाणे आहे (परमेश्वराचा उपासक असून सतत त्याच्या संगतीत, ध्यानात असतो) आणि (यत:) ज्या परमेश्वराच्या प्रतापामुळे हा मनुष्य (विष्णो:) सर्वव्यापी परमेश्वराच्या (कर्माणि) सृष्टीची रचना, पालन आणि प्रलय करणे आणि (जीवांच्या कर्मफळांचा) न्यायकरण आदी कर्मांना जाणतो आणि त्यानुसार (व्रर्तान) स्वत: सत्यभाषण, सद्व्यवहार आदी नियमांचा (पस्पशे) स्पर्श करतो (त्या व्रतांचे पालन करतो). हे मनुष्यांनो, तुम्ही सर्व जणदेखील त्या ईश्वरीय कर्म आणि मानवीय आचार -व्यवहारांकडे (पश्यत) पहा, लक्ष द्या. (तो उपासक ज्याप्रमाणे ईश्वराची उपासना करतो आणि ज्या ज्या नियमांचे पालन करतो, तुम्हीही त्याप्रमाणे करा) ॥33॥
भावार्थ
भावार्थ - ज्याप्रमाणे परमेश्वराचा मित्र असलेला एक उपासक विद्वान मनुष्य परमात्म्याच्या गुण, कर्म आणि स्वभाव यांनुसार आणि सृष्टीच्या नियमांनुकूल आचरण करतो, आणि त्याविषयी पूर्ण ज्ञानी असतो, तद्वत अन्य मनुष्यांनीदेखील करावे आणि जाणावे. ॥33॥
इंग्लिश (3)
Meaning
God is the adorable, inseparable companion of the soul ; which realises through His grace the actions and laws of the Omnipresent God. O man, ye should also observe them.
Meaning
Behold the great acts of the omnipresent lord of the universe, Vishnu, acts like the creation, sustenance and dissolution of the world. Therein I see the essence, the ultimate blueprint of the discipline and actions for living. He is the great friend and lover of the human soul. He is the giver of bliss.
Translation
Behold the marvellous creations of omnipresent God who fulfils our noble aspirations. He is a true friend of the soul. (1)
Notes
Repeated from Yajuh. VI. 4. The sacrificer places an ulükhala and musala, a mortar and pestle made of udunbara wood. At some places, these two symbolize the reproductive organs of the female and the male.
बंगाली (1)
विषय
বিদ্বদ্বদিতরৈর্জনৈরাচরণীয়মিত্যাহ ॥
বিদ্বান্তুল্য অন্য মনুষ্যকে আচরণ করা উচিত, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে (ইন্দ্রস্য) পরমেশ্বর ইচ্ছুক জীবের (য়ুজ্য) উপাসনা করিবার যোগ্য (সখা) মিত্র সমান বর্ত্তমান (য়তঃ) যাহার প্রতাপে এই জীব (বিষ্ণোঃ) ব্যাপক ঈশ্বরের (কর্মাণি) জগতের রচনা, পালন, প্রলয়কারী এবং ন্যায়াদি কর্ম্ম এবং (ব্রতানি) সত্যভাষণাদি নিয়মকে (পস্পশে) স্পর্শ করে, এই জন্য এই পরমাত্মার এই সব কর্ম্ম ও ব্রতকে তোমরাও (পশ্যত) দেখ ও ধারণ কর ॥ ৩৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যেমন পরমেশ্বরের মিত্র, উপাসক, ধর্মাত্মা বিদ্বান্ পুরুষ পরমাত্মার গুণ, কর্ম ও স্বভাবানুসারে সৃষ্টিক্রমের অনুকূল আচরণ করিবে এবং স্বয়ং জানিবে, সেইরূপ অন্য মনুষ্য করিবে ও জানিবে ॥ ৩৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বিষ্ণোঃ॒ কর্মা॑ণি পশ্যত॒ য়তো॑ ব্র॒তানি॑ পস্প॒শে ।
ইন্দ্র॑স্য॒ য়ুজ্যঃ॒ সখা॑ ॥ ৩৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বিষ্ণোঃ কর্মাণীত্যস্য গোতম ঋষিঃ । বিষ্ণুর্দেবতা । নিচৃদ্গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal