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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 33
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - आर्षी गायत्री,निचृत् आर्षी उष्णिक् स्वरः - मध्यमः, षड्जः
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    ओमा॑सश्चर्षणीधृतो॒ विश्वे॑ देवास॒ऽआग॑त। दा॒श्वासो॑ दा॒शुषः॑ सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि॒ विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्य॑ऽए॒ष ते॒ योनि॒र्विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्यः॑॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओमा॑सः। च॒र्ष॒णी॒धृ॒तः॒। च॒र्ष॒णि॒धृ॒त॒ इति॑ चर्षणिऽधृतः। विश्वे॑। दे॒वा॒सः॒। आ। ग॒त॒। दा॒श्वासः॑। दा॒शुषः॑। सु॒तम्। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। विश्वे॑भ्यः। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। विश्वे॑भ्यः। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑ ॥३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओमासश्चर्षणीधृतो विश्वे देवास आ गत । दाश्वाँसो दाशुषः सुतम् । उपयामगृहीतो सि विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यऽएष ते योनिर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ओमासः। चर्षणीधृतः। चर्षणिधृत इति चर्षणिऽधृतः। विश्वे। देवासः। आ। गत। दाश्वासः। दाशुषः। सुतम्। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। विश्वेभ्यः। त्वा। देवेभ्यः। एषः। ते। योनिः। विश्वेभ्यः। त्वा। देवेभ्यः॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 33
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    पदार्थ -

    गत मन्त्र का ‘त्रिशोक’ अत्यन्त उत्तम इच्छाओेंवाला होने के कारण ‘मधुच्छन्दाः’ बन जाता है। इनके लिए कहते हैं कि १. ( ओमासः ) = [ अव् रक्षणे, अवन्ति सद्गुणै रक्षन्ति ] सद्गुणों के धारण से अपनी रक्षा करनेवाले २. ( चर्षणीधृतः ) = मनुष्यों का धारण करनेवाले ३. ( विश्वेदेवासः ) = सब दिव्य गुणों को अपनानेवाले ४. ( दाश्वांसः ) = दान देनेवाले ( दाशुषः सुतम् ) = दानशील के ऐश्वर्य को ( आगत ) = प्राप्त होओ। दानशील के ऐश्वर्य को प्राप्त होने का अभिप्राय यह है कि तुम वह ऐश्वर्य प्राप्त करो जो तुम्हें कृपणता की वृत्तिवाला न बना दे, जिस धन को तुम उदारता से दान देनेवाले बने रहो। 

    ५. हे प्रभो! ( उपयायमगृहीतः असि ) = आप उपयामों से गृहीत होते हो। ( विश्वेभ्यः त्वा देवेभ्यः ) = मैं आपका ग्रहण इसलिए चाहता हूँ कि दिव्य गुणों को प्राप्त करनेवाला बनूँ। ( एषः ते योनिः ) = यह मेरा शरीर तेरा निवास-स्थान है। मैं अपने शरीर में ( त्वा ) = आपको इसलिए प्रतिष्ठित करता हूँ कि ( विश्वेभ्यः देवेभ्यः ) = सब दिव्य गुणों को प्राप्त कर सकूँ।

    भावार्थ -

    भावार्थ — प्रभुकृपा से हम १. वासनाओं से अपना रक्षण करनेवाले हों। २. मनुष्यों का धारण करनेवाले हों। ३. दिव्य गुणोंवाले हों ४. दान की वृत्तिवाले हों। ५. दान की वृत्तिवाले के धन को प्राप्त हों। ६. इस प्रकार सब दिव्य गुणोंवाले हों।

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