Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 19

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
    सूक्त - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - विराट्पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    ये बृ॒हत्सा॑मानमाङ्गिर॒समार्प॑यन्ब्राह्म॒णं जनाः॑। पेत्व॒स्तेषा॑मुभ॒याद॒मवि॑स्तो॒कान्या॑वयत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । बृ॒हत्ऽसा॑मानम् । अ॒ङ्गि॒र॒सम् । आर्प॑यन् । ब्रा॒ह्म॒णम् । जना॑: । पेत्व॑: । तेषा॑म् । उ॒भ॒याद॑म् । अवि॑: । तो॒कानि॑ । आ॒व॒य॒त् ॥१९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये बृहत्सामानमाङ्गिरसमार्पयन्ब्राह्मणं जनाः। पेत्वस्तेषामुभयादमविस्तोकान्यावयत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । बृहत्ऽसामानम् । अङ्गिरसम् । आर्पयन् । ब्राह्मणम् । जना: । पेत्व: । तेषाम् । उभयादम् । अवि: । तोकानि । आवयत् ॥१९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. (ये जना:) = जो लोग (बृहत् सामानम्) = महान् प्रभु के उपासक (आङ्गिरसम्) = अंगारों के समान ज्ञानदीस (ब्राह्मणम्) = ब्रह्मज्ञानी पुरुष को (आर्पयन्) = [ऋ हिंसायम्] हिंसित करते हैं, (तेषां तोकानि) = उनके सन्तानों को (पेत्वः) = सबका पालक (अविः) = रक्षक प्रभु (उभयादम् आवयत्) = अपने दोनों जबड़ों के बीच में चबा डालता है [वी खादने]। २. धुलोक व पृथिवीलोक ही प्रभु के जबड़े हैं। ज्ञानी का हिंसन करनेवाले राजा लोग धुलोक व पृथिवीलोक के कष्टों में पिस जाते

    भावार्थ -

    राजा को प्रभु-भक्त व ज्ञान-दीस ब्राह्मणों का आदर करना चाहिए। उन्हें हिसित करनेवाला राजा आधिदैविक आपत्तियों का शिकार हो जाता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top