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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 19/ मन्त्र 6
    सूक्त - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    उ॒ग्रो राजा॒ मन्य॑मानो ब्राह्म॒णं यो जिघ॑त्सति। परा॒ तत्सि॑च्यते रा॒ष्ट्रं ब्रा॑ह्म॒णो यत्र॑ जी॒यते॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒ग्र: । राजा॑ । मन्य॑मान:। ब्रा॒ह्म॒णम् । य: । जिघ॑त्सति । परा॑ । तत् । सि॒च्य॒ते॒ । रा॒ष्ट्रम् । ब्रा॒ह्म॒ण: । यत्र॑ । जी॒यते॑ ॥१९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उग्रो राजा मन्यमानो ब्राह्मणं यो जिघत्सति। परा तत्सिच्यते राष्ट्रं ब्राह्मणो यत्र जीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उग्र: । राजा । मन्यमान:। ब्राह्मणम् । य: । जिघत्सति । परा । तत् । सिच्यते । राष्ट्रम् । ब्राह्मण: । यत्र । जीयते ॥१९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (यः) = राजा-जो राजा (मन्यमान:) = अपने बल का अभिमान करता हुआ (उग्र:) = क्रूर-स्वभाव का बनता है और (बाह्मणम्) = ज्ञान का प्रसार करनेवाले ज्ञानी पुरुष को (जिघत्सति) = खा जाना चाहता है और परिणामतः (यत्र) = जिस राष्ट्र में (ब्राह्मण: जीयते) = यह ब्राह्मण तंग किया जाता है [to be oppressed], अत्याचारित होता है (त्तत् राष्ट्रम्) = वह राष्ट्र (परासिच्यते) = शत्रु द्वारा निर्धन कर दिया जाता है-रिक्त कोशवाला हो जाता है।

    भावार्थ -

    जिस राष्ट्र में राजा शक्ति के अभिमान में ब्राह्मणों पर क्रूरवृतिवाला होता है, वह राष्ट्र शीघ्र दरिद्र हो जाता है।

     

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