अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 22
सूक्त - अथर्वा
देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः
छन्दः - जगती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
इ॒त्थं श्रेयो॒ मन्य॑माने॒दमाग॑मं यु॒ष्माकं॑ स॒ख्ये अ॒हम॑स्मि॒ शेवा॑। स॑मा॒नज॑न्मा॒ क्रतु॑रस्ति॒ वः शि॒वः स वः॒ सर्वाः॒ सं च॑रति प्रजा॒नन् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒त्थम् । श्रेय॑: । मन्य॑माना: । इ॒दम् । आ । अ॒ग॒म॒म् । यु॒ष्माक॑म् । स॒ख्ये । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । शेवा॑ । स॒मा॒नऽज॑न्मा । क्रतु॑: । अ॒स्ति॒ । व॒: । शि॒व: । स: । व॒: । सर्वा॑: । सम् । च॒र॒ति॒ । प्र॒ऽजा॒नन् ॥९.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
इत्थं श्रेयो मन्यमानेदमागमं युष्माकं सख्ये अहमस्मि शेवा। समानजन्मा क्रतुरस्ति वः शिवः स वः सर्वाः सं चरति प्रजानन् ॥
स्वर रहित पद पाठइत्थम् । श्रेय: । मन्यमाना: । इदम् । आ । अगमम् । युष्माकम् । सख्ये । अहम् । अस्मि । शेवा । समानऽजन्मा । क्रतु: । अस्ति । व: । शिव: । स: । व: । सर्वा: । सम् । चरति । प्रऽजानन् ॥९.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 22
विषय - समानजन्मा 'क्रतु'
पदार्थ -
१. विराट् प्रभु कहते हैं कि (इत्थं श्रेयः मन्यमाना) = 'इसप्रकार कल्याण है', ऐसा मानता हुआ मैं (इदं आगमम्) = तुम्हारे जीवन-यज्ञ में आया हूँ। जब प्रभु उपस्थित रहते है, अर्थात् जब तक हम प्रभु को भूलते नहीं, तब तक जीवन पवित्र बना रहता है और अकल्याण का प्रसंग उपस्थित नहीं होता। (युष्माकं सख्ये) = तुम्हारी मित्रता में (अहं शेवा अस्मि) = मैं कल्याणकर हूँ। जब जीव प्रभ का मित्र बन जाता है तब प्रभु उसका कल्याण करते ही हैं। २. प्रभु कहते हैं कि यह (व:) = तुम्हारे (समानजन्मा) = जन्म के साथ ही उत्पन्न हुआ-हुआ (क्रतुः) = यज्ञ (शिवः अस्ति) = कल्याणकर है। ('सह यज्ञाः प्रजा: सृष्ट्वा') प्रभु ने प्रजाओं को यज्ञ के साथ ही उत्पन्न किया है। ये यज्ञ 'कामधुक्' है, सब इष्ट कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है। (स:) = वह यज्ञ (वः सर्वा:) = तुम सबका (प्रजानन्) = ध्यान करता हुआ संचरति गतिवाला होता है। यह यज्ञ जीवनों को स्वर्गमय बना देता है।
भावार्थ -
प्रभु हमारे जीवन-यज्ञ में उपस्थित रहते हैं तो कल्याण-ही-कल्याण होता है। प्रभु ने इस यज्ञ को हमारे साथ ही उत्पन्न किया है। यह यज्ञ हमारा कल्याण करता है और हम सबका पालन करता है।
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