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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    बृ॑ह॒तः परि॒ सामा॑नि ष॒ष्ठात्पञ्चाधि॒ निर्मि॑ता। बृ॒हद्बृ॑ह॒त्या निर्मि॑तं॒ कुतोऽधि॑ बृह॒ती मि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒ह॒त: । परि॑ । सामा॑नि । ष॒ष्ठात् । पञ्च॑ । अधि॑ । नि:ऽमि॑ता । बृ॒हत् । बृ॒ह॒त्या: । नि:ऽमि॑तम् । कुत॑ :। अधि॑ । बृ॒ह॒ती । मि॒ता ॥९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहतः परि सामानि षष्ठात्पञ्चाधि निर्मिता। बृहद्बृहत्या निर्मितं कुतोऽधि बृहती मिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत: । परि । सामानि । षष्ठात् । पञ्च । अधि । नि:ऽमिता । बृहत् । बृहत्या: । नि:ऽमितम् । कुत :। अधि । बृहती । मिता ॥९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १. 'अमोऽहमस्मि सा त्वं सा त्वमस्यमोऽहम्' इस [पार० कां० १०६।३] वाक्य के अनुसार पुरुष स्त्री का द्वन्द्व 'साम' है। इन इन्द्रों के शरीर प्रभु ने पञ्चमहाभूतों के द्वारा बनाये [तं वेधा विदधे नूनं महाभूतसमाधिना]। (षष्ठात्) = उस छठे प्रभु के द्वारा (पञ्च सामानि) = पाँच स्त्री पुरुषों के द्वन्द्वरूप शरीर-'ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व निषाद' सभी द्वन्द्व (बृहत: परि) = [परि from, out of] महाभूत [बृहत्-महान्] समाधि में से (अधिनिर्मिता) = बनाये गये। पाँच साम हैं, छठा इनका अधिष्ठाता प्रभु है। (बृहत्) = ये महाभूतसमूह (बृहत्या) = बृहती से-महत्तत्त्व से [प्रकृतेर्महान्] (निर्मितम्) = बनाया गया। अब प्रश्न होता है कि यह (बृहती) = महत्तत्त्व (कुत:) = कहाँ से (अधिमिता) = निर्मित हुआ? इस प्रश्न का उत्तर अगले मन्त्र में देते हैं कि-२. (बृहती) = महत्तत्व (मात्राया: परि) = [मात्रा-matter=मूल प्रकृति] प्रकृति में से निर्मित हुआ। (मातु:) = इस निर्माता प्रभु की अध्यक्षता में (मात्रा अधिनिर्मिता) = ['माता प्रजाता'-माता ने बच्चे को जन्म दिया] प्रकृति ने इस महत्तत्त्वरूप सन्तान को जन्म दिया। ३. 'इस संसार को बनाने के लिए प्रभु को प्रज्ञान कहाँ से उत्पन्न हुआ'? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि (माया) = प्रज्ञा (ह) = निश्चय से (मायाया: जज्ञे) = प्रज्ञा से ही प्रादुर्भूत हुई, अर्थात् प्रभु की प्रज्ञा कहीं और से उत्पन्न हो' ऐसी बात नहीं। प्रभु 'प्रज्ञानघन' ही है। (मायाया:) = इस प्रज्ञा के (परि मातली) = परे [beyond, more than] प्रभु हैं। प्रभु केवल सर्वज्ञ न होकर सर्वशक्तिमान् व सर्वेश्वर्यवान् भी हैं। 'माया व प्रज्ञा' प्रभु का एक रूप है। प्रभु उससे अधिक हैं। 'मातली' इन्द्र-सारथि कहलाता है। 'इन्द्र' जीव है, प्रभु इन जीवों को घुमा रहे हैं। जीवों के शरीररूप रथों के सञ्चालक प्रभु ही हैं।

    भावार्थ -

    प्रभु ने पञ्चमहाभूतों से ब्राह्मण आदि पाँच वर्गों के स्त्री-पुरुषों के शरीरों के इन्द्रों का निर्माण किया है। ये महाभूत महत्तत्त्व से हुए। महत्तत्त्व प्रकृति से। प्रभु की अध्यक्षता में प्रकृति ने इन महत्तत्त्व आदि को जन्म दिया। प्रभु की प्रज्ञा किसी और से प्रादुर्भूत नहीं हुई। प्रभु केवल प्रज्ञानस्वरूप न होकर सर्वशक्तिमान् व सर्वेश्वर भी हैं।

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