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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    कुत॒स्तौ जा॒तौ क॑त॒मः सो अर्धः॒ कस्मा॑ल्लो॒कात्क॑त॒मस्याः॑ पृथि॒व्याः। व॒त्सौ वि॒राजः॑ सलि॒लादुदै॑तां॒ तौ त्वा॑ पृच्छामि कत॒रेण॑ दु॒ग्धा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कुत॑: । तौ । जा॒तौ । क॒त॒म: । स: । अर्ध॑: । कस्मा॑त् । लो॒कात् । क॒त॒मस्या॑: । पृ॒थि॒व्या: । व॒त्सौ । वि॒ऽराज॑: । स॒लि॒लात् । उत् । ऐ॒ता॒म् । तौ । त्वा॒ । पृ॒च्छा॒मि॒ । क॒त॒रेण॑ । दु॒ग्धा ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुतस्तौ जातौ कतमः सो अर्धः कस्माल्लोकात्कतमस्याः पृथिव्याः। वत्सौ विराजः सलिलादुदैतां तौ त्वा पृच्छामि कतरेण दुग्धा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुत: । तौ । जातौ । कतम: । स: । अर्ध: । कस्मात् । लोकात् । कतमस्या: । पृथिव्या: । वत्सौ । विऽराज: । सलिलात् । उत् । ऐताम् । तौ । त्वा । पृच्छामि । कतरेण । दुग्धा ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. प्रभ विराट हैं-विशिष्ट दीतिवाले है। प्रकृति सलिलरूप है-सत् है और सारा संसार इसमें लीन हुआ-हुआ है, जैसे बच्चा मातृगर्भ में। प्रकृति के इस रूप को 'आप:' भी कहा गया है। यह प्रारम्भ में सूक्ष्म जल-कणों के बादल की भाँति व्याप्त-सी हो रही है तभी इसे 'नभस्' [nebula] नाम भी दिया जाता है। प्रभु और प्रकृति इस चराचर जगत् के पिता व माता हैं। पञ्चभूतों से बना सम्पूर्ण जगत् जड़ है। इन्हीं पञ्चभूतों से बना शरीर जब आत्मा को प्राप्त होता है तब वह चेतन हो उठता है। शरीरधारी जीव चेतनजगत् कहाता है। यह चेतन व जड़ जगत् ही चराचर संसार है। २. मन्त्र के प्रश्न है कि (कुतः तौ जातौ) = वे 'जड़-चेतन' कहाँ से प्रादुर्भूत हो गये। (कतम: स: अर्ध:) = कौन-सी वह [ऋधु वृद्धी] ऋद्धिमान् सत्ता है, जिसने कि इन्हें जन्म दिया? (कस्मात् लोकात्) = किस [लोक दर्शने] प्रकाशमय सत्ता से और (कतमस्याः पृथिव्याः) = किस फैले हुए तत्त्व से [प्रथ विस्तारे] ये जड़-चेतन उत्पन्न हो गये? ३. इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं कि (वत्सौ) = ये दोनों जड़-चेतनारूप वत्स [सन्तान] (विराज:) = उस विशिष्ट दीसिवाले प्रभु से तथा (सलिलात्) = सलिलरूप प्रकृति से (उत् एताम्) = उद्गत हुए। प्रश्नकर्ता पुन: पूछता है कि (तौ त्वा पृच्छामि) = उन दोनों बसों को लक्ष्य करके ही तुझसे पूछता हूँ कि कतरेण (दुग्धा) = इन दोनों में से किसने वेदवाणीरूप गौ का दोहन किया-प्रभु से दी गई वेदवाणी को कौन प्राप्त हुआ?

    भावार्थ -

    प्रभु विराट् हैं, प्रकृति सलिलरूप से चारों ओर फैली हुई है। प्रभुरूप पिता प्रकृतिरूप माता में चराचर जगद्रूप दो वत्सों को जन्म देते हैं। इनमें से चेतन [चर] जीवरूप वत्स प्रभु से वेदज्ञान प्राप्त करता है।

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