Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    षट्त्वा॑ पृच्छाम॒ ऋष॑यः कश्यपे॒मे त्वं हि यु॒क्तं यु॑यु॒क्षे योग्यं॑ च। वि॒राज॑माहु॒र्ब्रह्म॑णः पि॒तरं॒ तां नो॒ वि धे॑हि यति॒धा सखि॑भ्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    षट् । त्वा॒ । पृ॒च्छा॒म॒ । ऋष॑य: । क॒श्य॒प॒ । इ॒मे । त्वम् । हि । यु॒क्तम् । यु॒यु॒क्षे । योग्य॑म् । च॒ । वि॒ऽराज॑म् । आ॒हु॒: । ब्रह्म॑ण: । पि॒तर॑म् । ताम् । न॒: । वि । धे॒हि॒ । य॒ति॒ऽधा । सखि॑ऽभ्य: ॥९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षट्त्वा पृच्छाम ऋषयः कश्यपेमे त्वं हि युक्तं युयुक्षे योग्यं च। विराजमाहुर्ब्रह्मणः पितरं तां नो वि धेहि यतिधा सखिभ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    षट् । त्वा । पृच्छाम । ऋषय: । कश्यप । इमे । त्वम् । हि । युक्तम् । युयुक्षे । योग्यम् । च । विऽराजम् । आहु: । ब्रह्मण: । पितरम् । ताम् । न: । वि । धेहि । यतिऽधा । सखिऽभ्य: ॥९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. हे (कश्यप) = सर्वद्रष्टा प्रभो! (षट् त्वा) = पाँच सामों को [मन्त्र चार में] बनानेवाले छठे आपको (इमे ऋषय:) = ये ऋषि (पृच्छाम) = पूछते हैं। (त्वं हि) = आप ही (युक्तम्) = हमारे साथ सम्बद्ध इन बुद्धि आदि पदार्थों को (योग्यं च) = और जोड़ने योग्य ज्ञानादि को (युयुक्षे) = जोड़ते हैं। आप ही बुद्धि व ज्ञानादि देनेवाले हैं। २. [वाग्वै विराट्-शत०३।५।१।३४] (विराजम्) = इन सब ज्ञानों का दीपन करनेवाली वेदवाणी को (ब्रह्मण: पितरम् आहुः) = ज्ञान का रक्षक कहते हैं। (ताम्) = उस वेदवाणी को हम (सखिभ्य:) = सखाओं के लिए (यतिधा) = जितने भी प्रकार से सम्भव हो (विधेहि) = धारण कीजिए-हमें वेदवाणी प्राप्त कराइए।

    भावार्थ -

    ऋषि लोग प्रभु को जानने का प्रयत्न करते हैं। प्रभु ही बुद्धि व ज्ञान देनेवाले हैं। ज्ञान की रक्षिका वेदवाणी को प्रभु ही हमारे लिए सब प्रकार से प्राप्त कराते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top