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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 23
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    अ॒ष्टेन्द्र॑स्य॒ षड्य॒मस्य॒ ऋषी॑णां स॒प्त स॑प्त॒धा। अ॒पो म॑नु॒ष्या॒नोष॑धी॒स्ताँ उ॒ पञ्चानु॑ सेचिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ष्ट । इन्द्र॑स्य । षट् । य॒मस्य॑ । ऋषी॑णाम् । स॒प्त । स॒प्त॒ऽधा । अ॒प: । म॒नु॒ष्या᳡न् । ओष॑धी: । तान् । ऊं॒ इति॑ । पञ्च॑ । अनु॑ । से॒चि॒रे॒ ॥९.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अष्टेन्द्रस्य षड्यमस्य ऋषीणां सप्त सप्तधा। अपो मनुष्यानोषधीस्ताँ उ पञ्चानु सेचिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अष्ट । इन्द्रस्य । षट् । यमस्य । ऋषीणाम् । सप्त । सप्तऽधा । अप: । मनुष्यान् । ओषधी: । तान् । ऊं इति । पञ्च । अनु । सेचिरे ॥९.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 23

    पदार्थ -

    १. (इन्द्रस्य अष्ट) = जितेन्द्रिय पुरुष के शरीर के उपादानभूत पाँचों भूतांशों तथा 'मन, बुद्धि व अहंकार' को (यमस्य षट्) = संयत जीवनवाले पुरुष के पाँचों ज्ञानेन्द्रियों व मन को, (ऋषीणाम्) = [ऋष् tokill] वासनाओं का संहार करनेवाले पुरुषों के (सप्तधा सप्त) = सात-सात प्रकार से विभक्त होकर कार्य करनेवाले, अर्थात् उनचास मरुतों [प्राणों] को (पञ्च अनुसेचिरे) = पाँचों तत्त्व [पृथिवी, जल, तेज, वायु व आकाश] अनुकूला से समवेत होते हैं, परिणामतः इन्द्र के आठ, यम के छह तथा ऋषियों के ये उनचास पदार्थ ठीक बने रहते हैं, अपना-अपना कार्य ठीक प्रकार से करते हैं। २. (उ) = और (अपः मनुष्यान् ओषधी:) = उन मनुष्यों को जिनमें कि एक ओर जल हैं [अप:] और दूसरी ओर ओषधियाँ, (तान्) = उन्हें (उ) = भी ये पाँच अनुकूलता से सेवन करनेवाले होते हैं। मनुष्य का खान-पान यदि जल व ओषधियाँ ही रहें तो पाँचों तत्त्वों के ठीक रहने से उसका स्वास्थ्य ठीक बना रहता है। यहाँ वेद ने मनुष्य को बड़ी सुन्दरता से संकेत किया है कि जल तेरे दक्षिण हस्त में हो तो ओषधियाँ वाम हस्त में, अर्थात् तुझे पानी पीना है और वानस्पतिक भोजन का ही सेवन करना है। अन्यत्र यही भाव ('पयः पशूनां रसमोषधीनाम्') = इन शब्दों में व्यक्त किया गया है कि तुझे पशुओं का दूध ही लेना है, मांस नहीं।

    भावार्थ -

    हम जितेन्द्रिय [इन्द्र], नियन्त्रित जीवनवाले [यम] व वासनाओं का संहार करनेवाले [ऋषि] बनें। जलों व ओषधियों से ही शरीर का पोषण करें, मांस से नहीं। ऐसा होने पर हमें पञ्चभूतों की अनुकूलता से पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त होगा।

     

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