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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 39
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    कया॑ नश्चि॒त्रऽ आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑।कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कया॑। नः॒। चि॒त्रः। आ। भु॒व॒त्। ऊ॒ती। स॒दावृ॑ध॒ इति॑ स॒दाऽवृधः॑। सखा॑। कया॑। शचि॑ष्ठया। वृ॒ता ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कया नश्चित्रऽआ भुवदूती सदावृधः सखा । कया शचिष्ठया वृता ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कया। नः। चित्रः। आ। भुवत्। ऊती। सदावृध इति सदाऽवृधः। सखा। कया। शचिष्ठया। वृता॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 39
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    भावार्थ -
    हे (चित्र) अद्भुत कर्म करनेहारे वीर ! तू (सदावृधः सखा) सदा बढ़ाने वा बढ़ने हारे पुरुष का मित्र है । तू (कया ऊती) किस रक्षण सामर्थ्य से और (कया) किस (वृता) सदा विद्यमान (शचिष्ठया वृता) अतिशक्तिशाली रक्षा या क्रिया से (नः) हमारा (सखा) मित्र ( भा भुवत् ) बना रह सकता है । अथवा - ( कया) सुख देनेहारी, (वृता) व्यवहार शैली और (ऊती) रक्षा द्वारा तू हमारा मित्र बना रहता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ( ३९–४१ ) वामदेव ऋषिः । इन्द्रो देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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