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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 26
    ऋषिः - हिरण्यगर्भ ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यश्चि॒दापो॑ महि॒ना प॒र्यप॑श्य॒द् दक्षं॒ दधा॑ना ज॒नय॑न्तीर्य॒ज्ञम्। यो दे॒वेष्वधि॑ दे॒वऽ एक॒ऽ आसी॒त् कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। चि॒त्। आपः॑। म॒हि॒ना। प॒र्यप॑श्य॒दिति॑ परि॒ऽअप॑श्यत्। दक्ष॑म्। दधा॑नाः। ज॒नय॑न्तीः। य॒ज्ञम्। यः। दे॒वेषु॑। अधि॑। दे॒वः। एकः॑। आसी॑त्। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षन्दधाना जनयन्तीर्यज्ञम् । यो देवेष्वधि देवऽएकऽआसीत्कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। चित्। आपः। महिना। पर्यपश्यदिति परिऽअपश्यत्। दक्षम्। दधानाः। जनयन्तीः। यज्ञम्। यः। देवेषु। अधि। देवः। एकः। आसीत्। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 26
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    भावार्थ -
    ( यः चित् ) और जो (महिना) अपने महान् सामर्थ्य से ((दक्षं दधानाः) बल और क्रियावेग को धारण करती हुई (यज्ञं जनयन्तीः) - सुसंगत, नियमबद्ध संसार को प्रकट करती हुई (आपः) प्रकृति की सूक्ष्म तन्मात्राओं को ( परि अपश्यत् ) साक्षात् देखता, उन पर साक्षी रूप से विद्यमान रहता है और (यः) जो (देवेषु) समस्त क्रीड़ाशील, फलाकांक्षी भोक्ता जीवों और पृथिव्यादि लोकों पर (एकः देवः) एक अद्वितीय सर्व- `प्रकाशक सुखदाता परमेश्वर ( अधि आसीत् ) अधिष्ठाता है, (कस्मै) उस विश्व के कर्त्ता सुखकारक परमेश्वर को हम (हविषा ) ज्ञान और क्रियायोग से (विधेम) परिचर्या करें। राजा - अपने महान् सामर्थ्य से बल को धारण करते हुए, (यज्ञम् ) राष्ट्र को और राष्ट्रपति को प्रकट करते हुए (आपः) प्रजाओं को अध्यक्ष- रूप से देखता है और (य: देवेषु अधिदेवः एकः ) जो एक ही सब विद्वानों और शासकों पर भी शासक है उसका हम अन्नादि से सत्कार करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - हिरण्यगर्भ ऋषिः। प्रजापतिर्देवता । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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