Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 38
    ऋषिः - देवावत ऋषिः देवता - रक्षोघ्नो देवता छन्दः - भूरिक ब्राह्मी बृहती, स्वरः - मध्यमः
    1

    दे॒वस्य॑ त्वा सवि॒तुः प्र॑स॒वेऽश्विनो॑र्बा॒हुभ्यां॑ पू॒ष्णो हस्ता॑भ्याम्। उ॒पा॒शोर्वी॒र्येण जुहोमि ह॒तꣳ रक्षः॒ स्वाहा॒ रक्ष॑सां त्वा व॒धायाव॑धिष्म॒ रक्षोऽव॑धिष्मा॒मुम॒सौ ह॒तः॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वस्य॑। त्वा॒। स॒वि॒तुः। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। अ॒श्विनोः॑। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। पू॒ष्णः। हस्ता॑भ्याम्। उ॒पा॒शोरित्यु॑पऽअ॒ꣳशोः। वी॒र्येण। जु॒हो॒मि॒। ह॒तम्। रक्षः॑। स्वाहा॑। रक्ष॑साम्। त्वा॒। व॒धाय॑। अव॑धिष्म। रक्षः॑। अव॑धिष्म। अ॒मुम्। अ॒सौ। ह॒तः ॥३८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवस्य त्वा सवितुः प्रसवे श्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णो हस्ताभ्याम् । उपाँशोर्वीर्येण जुहोमि हतँ रक्षः स्वाहा रक्षसान्त्वा वधायावधिष्म रक्षोवधिष्मामुमसौ हतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवस्य। त्वा। सवितुः। प्रसव इति प्रऽसवे। अश्विनोः। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। पूष्णः। हस्ताभ्याम्। उपाशोरित्युपऽअꣳशोः। वीर्येण। जुहोमि। हतम्। रक्षः। स्वाहा। रक्षसाम्। त्वा। वधाय। अवधिष्म। रक्षः। अवधिष्म। अमुम्। असौ। हतः॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 38
    Acknowledgment

    भावार्थ -

    हे वीर पुरुष ! ( सवितुः ) सबके उत्पादक, कर्त्ता एवं प्रेरक ( देवस्य ) देव, राजा के ( प्रसवे ) ऐश्वर्यमय राज्य में ( अश्विनो : बाहुभ्याम् ) अश्वियों के बाधक सामर्थ्यों से और ( पूष्ण: ) परिपोषक मित्र राजा के (हस्ताभ्याम्) सब हनन साधनों से और ( उपांशोः ) उपांशु, प्राणस्वरूप प्रजापति राजा के (वीर्येण ) बल, वीर्य और अधिकार से ( रक्षसां ) राक्षसों, विघ्नकारियों के ( बधाय ) विनाश करने के लिये ही ( त्वा जुहोमि ) तुझे युद्ध-यज्ञ में आहुति देता हूं, भेजता हूं । जाओ ( स्वाहा ) उत्तम युद्ध की शैली से उत्तम कीर्ति और नामवरी सहित ( रक्षः ) राक्षसों, राज्य के विघ्नकारी लोगों को ( हतम् ) मारडाला जाय। हे ( रक्षः ) राक्षस, दुष्ट पुरुष ( त्वा ) तुझको हमें युद्धस्थल में तुझे ( अबधिष्म ) नाश करते हैं। इस प्रकार हम ( रक्षः ) समस्त दुष्ट पुरुषों को ( अवधिष्म ) विनाश करें । और ( अमुम् अवधिष्म ) हम उस अमुक विशेष शत्रु का नाश करते हैं । इस प्रकार ( असौ हतः ) वह 
    छांट २ कर मारा जाय ॥ शत० ५ । २ । ४ । १७ ।। 
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    देववात ऋषिः । रक्षोघ्नो देवता । स्वराड् ब्राह्मी बृहती । मध्यमः ॥ 

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top