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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 23
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - स्वराट त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    वाज॑स्ये॒मं प्र॑स॒वः सु॑षु॒वेऽग्रे॒ सोम॒ꣳ राजा॑न॒मोष॑धीष्व॒प्सु। ताऽअ॒स्मभ्यं॒ मधु॑मतीर्भवन्तु व॒यꣳ रा॒ष्ट्रे जा॑गृयाम पु॒रोहि॑ताः॒ स्वाहा॑॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वाज॑स्यः। इ॒मम्। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वः। सु॒षु॒वे। सु॒सु॒व॒ इति सुसुवे। अग्रे॑। सोम॑म्। राजा॑नम्। ओष॑धीषु। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। ताः। अ॒स्मभ्य॑म्। मधु॑मती॒रिति॒ मधु॑ऽमतीः। भ॒व॒न्तु॒। व॒यम्। रा॒ष्ट्रे। जा॒गृ॒या॒म॒। पु॒रोहि॑ता॒ इति॑ पु॒रःऽहि॑ताः। स्वाहा॑ ॥२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाजस्येमम्प्रसवः सुषुवे ग्रे सोमँ राजानमोषधीष्वप्सु । ताऽअस्मभ्यं मधुमतीर्भवन्तु वयँ राष्टे जागृयाम पुरोहिताः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वाजस्यः। इमम्। प्रसव इति प्रऽसवः। सुषुवे। सुसुव इति सुसुवे। अग्रे। सोमम्। राजानम्। ओषधीषु। अप्स्वित्यप्ऽसु। ताः। अस्मभ्यम्। मधुमतीरिति मधुऽमतीः। भवन्तु। वयम्। राष्ट्रे। जागृयाम। पुरोहिता इति पुरःऽहिताः। स्वाहा॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 23
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    भावार्थ -

    ( वाजस्य प्रसवः ) संग्राम और वीर्य का ऐश्वर्य या समृद्धि ही ( अग्रे ) सबसे प्रथम ( औषधीषु सोमम् ) औषधियों में जिस प्रकार सोम सर्वश्रेष्ट सबसे अधिक वीर्यवान् है उसी प्रकार ( अशु ) प्रजाओं में ( इमं राजा ) इस सर्वोपरि राजमान सम्राट् को ( सुषुवे ) उत्पन्न करता है । ( ताः ) वे औषधिय ( अस्मभ्यम् ) हमारे लिये ( मधुमती: ) अन्न आदि मधुर पदार्थों से सम्पन्न हों और वे प्रजाएं भी अन्न आदि ऐश्वर्य से युक्त हों और जल भी मधुरगुण से युक्त हों। ( वयम् ) हम अमात्य आदि राष्ट्र के पालक पुरुष ( राष्ट्रे ) राष्ट्र में, सब कार्यों में ( पुरोहिताः ) अग्रसर होकर, मुख्य पद पर विराजकर राष्ट्र में ( स्वाहा ) उत्तम शासन व्यवस्था सहित ( जागृयाम ) सदा जागते रहें, सदा सावधान होकर शासन करें । शत० ५ । २ । २ । ५ ॥ 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    प्रजापतिर्देवता। स्वराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥ 
     

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