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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 34
    ऋषिः - तापस ऋषिः देवता - वस्वादयो मन्त्रोक्ता देवताः छन्दः - निचृत् जगती,निचृत् धृति, स्वरः - ऋषभः
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    वस॑व॒स्त्रयो॑दशाक्षरेण त्रयोद॒शꣳ स्तोम॒मुद॑जयँ॒स्तमुज्जे॑षꣳ रु॒द्राश्चतु॑र्दशाक्षरेण चतुर्द॒शꣳ स्तोम॒मुद॑जयँ॒स्तमुज्जे॑षमादि॒त्याः पञ्च॑दशाक्षरेण पञ्चद॒शꣳ स्तोम॒मुद॑जयँ॒स्तामुज्जे॑ष॒मदि॑तिः॒ षोड॑शाक्षरेण षोड॒शꣳस्तोम॒मुद॑जय॒त् तमुज्जे॑षं प्र॒जाप॑तिः स॒प्तद॑शाक्षरेण सप्तद॒शꣳ स्तोम॒मुद॑जय॒त् तमुज्जे॑षम्॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वस॑वः। त्रयो॑दशाक्षरे॒णेति॒ त्रयो॑दशऽअक्षरेण। त्र॒यो॒द॒शमिति॑ त्रयःऽद॒शम्। स्तोम॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒न्। तम्। उत्। जे॒ष॒म्। रु॒द्राः। चतु॑र्दशाक्षरे॒णेति॒ चतु॑र्दशऽअक्षरेण। च॒तु॒र्द॒शमिति॑ चतुःऽद॒शम्। स्तोम॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒न्। तम्। उत्। जे॒ष॒म्। आ॒दि॒त्याः। पञ्च॑दशाक्षरे॒णेति॒ पञ्च॑दशऽअक्षरेण। प॒ञ्च॒द॒शमिति॒ पञ्चऽद॒शम्। स्तोम॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒न्। तम्। उत्। जे॒ष॒म्। अदि॑तिः। षोड॑शाक्षरे॒णेति॒ षोड॑शऽअक्षरेण। षो॒ड॒शम्। स्तोम॑म्। उत्। अ॒ज॒यत्। तम्। उत्। जे॒ष॒म्। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः। स॒प्त॑दशाक्षरे॒णेति स॒प्तद॑शऽअक्षरेण। स॒प्त॒द॒श॒मिति॑ सप्तऽद॒शम्। स्तोम॑म्। उत्। अ॒ज॒य॒त्। तम्। उत्। जे॒ष॒म् ॥३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसवस्त्रयोदशाक्षरेण त्रयोदशँ स्तोममुदजयँस्तमुज्जेषँ रुद्राश्चतुर्दशाक्षरेण चतुर्दशँ स्तोममुदजयँस्तमुज्जेषमादित्याः पञ्चदशाक्षरेण पञ्चदशँ स्तोममुदजयँस्तमुज्जेषमदितिः षोडशाक्षरेण षोडशँ स्तोममुदजयत्तमुज्जेषम्प्रजापतिः सप्तदशाक्षरेण सप्तदशँ स्तोममुदजयत्तमुज्जेषम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वसवः। त्रयोदशाक्षरेणेति त्रयोदशऽअक्षरेण। त्रयोदशमिति त्रयःऽदशम्। स्तोमम्। उत्। अजयन्। तम्। उत्। जेषम्। रुद्राः। चतुर्दशाक्षरेणेति चतुर्दशऽअक्षरेण। चतुर्दशमिति चतुःऽदशम्। स्तोमम्। उत्। अजयन्। तम्। उत्। जेषम्। आदित्याः। पञ्चदशाक्षरेणेति पञ्चदशऽअक्षरेण। पञ्चदशमिति पञ्चऽदशम्। स्तोमम्। उत्। अजयन्। तम्। उत्। जेषम्। अदितिः। षोडशाक्षरेणेति षोडशऽअक्षरेण। षोडशम्। स्तोमम्। उत्। अजयत्। तम्। उत्। जेषम्। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः। सप्तदशाक्षरेणेति सप्तदशऽअक्षरेण। सप्तदशमिति सप्तऽदशम्। स्तोमम्। उत्। अजयत्। तम्। उत्। जेषम्॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 34
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    भावार्थ -

    [१३] ( वसवः ) गृह वसाने योग्य, २४ वर्ष का ब्रह्मचारी, विद्वान् पुरुष ( त्रयोदशाक्षरेण ) जिस नव बाह्यद्वार और चार अन्तः- करणों में स्थित अक्षय वीर्य से ( त्रयोदशं स्तोमम् ) इन १३ हों समूह इस काम पर ( उद् अजयम् ) वश करते हैं उसी प्रकार मैं भी राजा. १३ प्रधान पुरुषों के बल से ( तं त्रयोदशं स्तोमम् ) उन १३ विभागों से युक्त राष्ट को ( उत् जेषम् ) वश करूं । 
    [ १४ ] ( रुद्राः ) प्राणों के अभ्यासी ३६ वर्ष के नैष्ठिक ब्रह्मचारी जिस प्रकार दश बाह्येन्द्रिय और ४ भीतरी अन्तःकरणों को वश करके ( चतुर्दशं स्तोमम् उत् अजयत् ) १४ हों के समूह को वश करते हैं उसी प्रकार में रुद्ररुप शत्रुओं को रुलाने में समर्थ होकर १४ अध्यक्षों से युक्त राष्ट्र को ( उत् जेषम् ) वश करूँ । 
    [ १५ ] ( अदित्याः ) आदित्य के समान तेजश्वी ४८ वर्ष तक ब्रह्मचर्यपालक विद्वान् पुरुष जिस प्रकार ( पञ्चदशाक्षरेण ) मेरुदण्ड के चौदह मोहरों और उनमें व्यापक १५ वें वीर्य को सुरक्षित रखकर ( पञ्चदशं स्तोमम् उदजयन् ) १५ के समूह इस मेरुदण्ड को वश करते, उसे खूब दृढ़ करते हैं उसी प्रकार में आदित्य के समान तेजस्वी होकर १५ राष्ट्र के विभागाध्यक्षों के बल से ( पञ्चदशं स्तोमम् ) १५ विभागों से युक्त राष्ट्र को ( उत् जेषम् ) वश करूं । 
    કર્ક[ १६ ] ( अदितिः ) अखण्ड ब्रह्मचारिणी जिस प्रकार ( षोडशा- क्षरेण ) १६ वर्ष के अखण्ड तप से ( षोडशं स्तोमम् उद् अजयत् ) १६ वर्ष समूह पर विजय प्राप्त करती है और जिस प्रकार ( अदिति: ) अखण्ड ब्रह्मशक्ति १६ कला समूहों पर वश करती है. उसी प्रकार मैं ( अदिति: ) अखण्ड शासन से युक्त होकर ( षोडशाक्षरेण ) १६ सदस्यों द्वारा ( षोडशं स्तोमम् ) उनसे चलाये गये राज्य- कार्य को ( उत् जेषम् ) वश करूं । 
    [ १७ ] ( प्रजापतिः ) प्रजा का पालक परमेश्वर ( सप्तदशाक्षरेण ) १६ कलाओं और १७ वीं ब्रह्मकला के अक्षय बल से युक्त होकर सप्त- दशं स्तोमम् उदजयत् ) सप्तदश स्तोम, १७ हों शक्तियों के समूह को वश करता है उसी प्रकार मैं ( प्रजापतिः ) प्रजा का स्वामी राजा होकर १६ अमात्य एवं १७ वीं अपनी मति सहित सबके अक्षर, अखण्ड-बल से ( तम् ) उस सब पर ( उत् जेषम् ) वश करूं । 
     १        अग्निः     एकाक्षरेण         प्राणम्              उदजयत् 

      २       अश्विनौ     द्वयक्षरेण      द्विपदः मनुष्यान्            ,,    
     ३        विष्णुः      त्र्यतरेण       त्रीन् लोकान्               ,, 

      ४         सोमः       चतुरक्षरेण    चतुष्पदः पशून्            ,,     
     ५        पूषा:        पञ्चाक्षरेण     पञ्चदिश:                 ,,     
     ६         सविता      षडक्षरेण      ऋतून                    ,,    
     ७         मरुतः       सप्ताक्षरे       सप्तग्राम्यान् पशून         ,,    
     ८         बृहस्पतिः     अष्टाक्षरेण     गायत्रीम्                ,,     
     ९          मित्र:        नवाक्षरेण      त्रिवृतं स्तोमम्          ,,      
     १०          वरुणः      दशाचरेण       विराजम्             ,, 

       ११           इन्द्रः        एकादशाक्षरेण   त्रिष्टुभम्          उदयाचल
     १२           विश्वेदेवाः    द्वादशाक्षरेण    जगतीम्               ,,
    १३            वसवः      त्रयोदशाक्षरेण   त्रयोदशं स्तोमम्       ,,
    १४           रुद्राः        चतुर्दशाक्षरेण    चतुर्दशं स्तोमम्       ,,
    १५           आदित्याः    पञ्चदशाक्षरेण    पञ्चदशं स्तोमम्    ,,
    १६           अदिति:      षोडशाक्षरेण     षोडशं  स्तोमम्    ,,
    १७           प्रजापतिः    सप्तदशाक्षरेण    सप्तदशं स्तोमम्    ,,
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    तापस ऋषिः । वस्वादयो देवताः । ( १ ) निचृज्जगती । निषादः । ( २ ) निचृद धृतिः ऋषभः ॥ 

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