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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 5
    ऋषिः - बृहस्पतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - भूरिक अष्टि, स्वरः - मध्यमः
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    इन्द्र॑स्य॒ वज्रो॑ऽसि वाज॒सास्त्वया॒यं वाज॑ꣳ सेत्। वाज॑स्य॒ नु प्र॑स॒वे मा॒तरं॑ म॒हीमदि॑तिं॒ नाम॒ वच॑सा करामहे। यस्या॑मि॒दं विश्वं॒ भुव॑नमावि॒वेश॒ तस्यां॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता धर्म॑ साविषत्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑स्य। वज्रः॑। अ॒सि॒। वा॒ज॒सा इति॑ वाज॒ऽसाः। त्वया॑। अ॒यम्। वाज॑म्। से॒त्। वाज॑स्य। नु। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। मा॒तर॑म्। म॒हीम्। अदि॑तिम्। नाम॑। वचसा॑। क॒रा॒म॒हे॒। यस्या॑म्। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। आ॒वि॒वेशत्या॑ऽवि॒वेश॑। तस्या॑म्। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। धर्म॑। सा॒वि॒ष॒त् ॥५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्य वज्रोसि वाजसास्त्वयायँ सेत् । वाजस्य नु प्रसवे मातरम्महीमदितिन्नाम वचसा करामहे । यस्यामिदँ विश्वं भुवनमाविवेश तस्यान्नो देवः सविता धर्म साविषत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रस्य। वज्रः। असि। वाजसा इति वाजऽसाः। त्वया। अयम्। वाजम्। सेत्। वाजस्य। नु। प्रसव इति प्रऽसवे। मातरम्। महीम्। अदितिम्। नाम। वचसा। करामहे। यस्याम्। इदम्। विश्वम्। भुवनम्। आविवेशत्याऽविवेश। तस्याम्। नः। देवः। सविता। धर्म। साविषत्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 5
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    भावार्थ -

    हे वीर पुरुष ! तू ( इन्द्रस्य ) ऐश्वर्यवान् राजा का (वज्रः ) शत्रु निवारक वज्र या खड्ग के समान शत्रु का नाशक ( असि ) हैं | तू ( वाजसाः ) संग्रामों का पूर्ण अनुभवी है । ( त्वया ) तेरे द्वारा ( अयम् ) यह राजा ( वाजम् ) संग्राम को विजय ( सेतू) करे। (तु) शीघ्र ही ( वाजस्य सवे ) वीर्य के या युद्ध के ऐश्वर्यजनक कार्य में ( महीम् ) बड़ी (अदितिम् ) अखण्डित, अविनाशी ( मातरम् ) भूमि माता को हम ( वचसा ) अपनी आज्ञा से ( नाम ) अपने अधीन वश ( करामहे ) करें (यस्याम् ) जिसमें (इदं) यह ( विश्वं भुवनम् ) समस्त संसार ( आविवेश ) स्थित है । ( तस्याम् ) उसमें ( सविताः ) सब अधिकारियों का प्रेरक प्रवर्तक और उत्पादक ( देवः ) देव, राजा ( नः ) हमारे लिये ( धर्म ) धर्म, धारण या राष्ट्र व्यवस्था को ( साविषत् ) चलावे । अथवा ( यस्याम् इदं भुवनं अविवेश ) जिसमें यह समस्त विश्व स्थित है उसमें सर्वो- त्पादक परमेश्वर (धर्म) हमारे पालन पोषण की सुव्यवस्था करे || शत ५।१।४ । ३, ४ ॥ 
    रथपक्ष में - हे रथ ! तू इन्द्र का संग्रामगामी वज्र है। तुझ से वह संग्राम में जावे । ( भ्राजाय प्रसवे ) ऐश्वर्य के लाभ के लिये हम अखण्ड पृथिवी को ( वचसा नाम करामहे ) अपनी आज्ञा से वश करें । इत्यादि पूर्ववत् । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    सविता देवता । भुरिग् ऋष्टिः । मध्यमः ॥ 

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